उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव 2022
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उत्तर प्रदेश में होने वाले नगर निकाय चुनाव को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बिना ओबीसी आरक्षण के नगर निकाय चुनाव कराने का फैसला सुना दिया है

उत्तर प्रदेश में होने वाले नगर निकाय चुनाव को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने अहम फैसला सुनाते हुए ओबीसी आरक्षण को रद्द कर दिया है. ओबीसी के लिए आरक्षित अब सभी सीटें जनरल मानी जाएंगी. हाई कोर्ट ने तत्काल निकाय चुनाव कराने का निर्देश दिया है.

Sunil Shukla

UP Nagar Nikay Chunav 2022: यूपी नगर निकाय चुनाव को लेकर मंगलवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने अपना फैसला सुना दिया है. जिसके बाद राज्य में निकाय चुनाव का रास्ता साफ हो गया है. कोर्ट ने अपने फैसले में साफ तौर पर कहा है कि राज्य में इस बार निकाय चुनाव बिना ओबीसी आरक्षण (OBC Reservation) के होगा. इस मामले में हाईकोर्ट की लखनऊ (Lucknow) बेंच ने फैसला सुनाया है. 

निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने फैसला मंगलवार को सुना दिया है. हालांकि इस दौरान कोर्ट ने राज्य सराकर को झटका देते हुए ड्राफ्ट नोटिफिकेशन को खारिज कर दिया है. वहीं कोर्ट ने बिना ओबीसी आरक्षण के ही राज्य में चुनाव कराने का फैसला सुनाया है. इससे पहले हाई कोर्ट ने पिछली सुनवाई के दौरान अपना फैसला सुरक्षित रखा था. जिसके बाद कोर्ट द्वारा मंगलवार को सुनवाई की अगली तारीख तय की गई थी. 

बिना ओबीसी आरक्षण के हो सकता है चुनाव
कोर्ट ने कहा कि चुनाव में ओबीसी आरक्षण ट्रिपल टेस्ट के आधार पर दिया जाएगा. ट्रिपल टेस्ट के बिना कोई ओबीसी आरक्षण नहीं हो सकता है. यह निर्णय न्यायमूर्ति देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की खंडपीठ ने इस मुद्दे पर दाखिल 93 याचिकाओं पर एक साथ पारित करते हुए दिया है. जिसके बाद माना जा रहा है कि अब इसपर मुख्य फैसला सरकार और आयोग के हाथ में है.

कोर्ट ने अपने फैसले में सरकार को तुरंत चुनाव कराने का निर्देश दिया है. हालांकि कोर्ट ने एससी और एसटी आरक्षक के साथ चुनाव कराने की बात कही है. कोर्ट के इस फैसले के बाद अब ओबीसी आरक्षण वाली सभी सीटें सामान्य होंगी. अब कोर्ट के इस फैसले के बाद संभावना है कि जनवरी में चुनाव हो सकता है. हालांकि अगर राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट नहीं जाती है, तब ही ऐसा संभव होगा.

ओबीसी के लिए आरक्षित सीटें मानी जाएंगी सामान्य

हाई कोर्ट के इस आदेश के बाद अब प्रदेश में किसी भी तरह का ओबीसी आरक्षण नहीं रह गया है. यानी सरकार द्वारा जारी किया गया ओबीसी आरक्षण नोटिफिकेशन रद्द हो गया है और अगर सरकार या निर्वाचन आयोग अभी चुनाव कराता है तो ओबीसी के लिए आरक्षित सीटों को जनरल मानकर चुनाव होगा, जबकि एससी-एसटी के लिए आरक्षित सीटें यथावत रहेंगी यानी इसमें कोई बदलाव नहीं होगा. 

कोर्ट के फैसले पर सीएम ने क्या कहा? 
नगर निकाय के चुनाव को लेकर हाईकोर्ट का फैसला आने के तत्काल बाद ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यानाथ ने कहा कि नगर निकाय का चुनाव पिछड़ों को आरक्षण दिए बगैर नहीं कराएंगे। उन्होंने कहा कि पिछड़ों को आरक्षण देने के लिए पहले पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन करेंगे और इसके बाद ट्रिपल टेस्ट के आधार पर पिछड़ों के लिए आरक्षण तय किया जाएगा। इसके बाद ही नगर निकाय चुनाव कराएंगे। मुख्यमंत्री ने कहा कि हाईकोर्ट के फैसले के परिप्रेक्ष्य में सरकार कानूनी राय ले रही है। इसके बाद जरूरी हुआ तो सरकार सुप्रीम कोर्ट में भी अपील करेगी। 

चार राज्यों में पहले ही फंस चुका है पेंच
ऐसा नहीं है कि ट्रिपल टेस्ट को लेकर केवल यूपी में नगर निकाय चुनाव फंसा है। इसके पहले चार अन्य राज्यों में भी इसी तरह का विवाद हो चुका है। इसमें मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार और झारखंड शामिल है। 
 

1. महाराष्ट्र: इस साल की शुरुआत में बिना ट्रिपल टेस्ट लागू करके ओबीसी आरक्षण देने के महाराष्ट्र सरकार के फैसले को खारिज कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने भी बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। तब राज्य सरकार पिछड़ों को आरक्षण देने के लिए अध्यादेश ले आई। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस अध्यादेश को भी खारिज कर दिया। अंत में राज्य सरकार को पिछड़ा आयोग का गठन करना पड़ा और उसकी सिफारिशों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की अनुमति दी। 
 

2. बिहार: राज्य सरकार ने पिछड़ा वर्ग आयोग की जगह पहले से काम कर रहे अति पिछड़ा आयोग को ओबीसी आरक्षण की रिपोर्ट तैयार करने का काम सौंप दिया। इस फैसले को यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई कि यह समर्पित पिछड़ा आयोग नहीं है। हालांकि, कोर्ट ने आयोग की रिपोर्ट के आधार पर जारी चुनाव कार्यक्रम में कोई दखल नहीं दिया। लेकिन, आयोग की वैधता पर जरूर जनवरी में सुनवाई होगी। 
 

3. मध्य प्रदेश: यहां भी नगर निकाय का चुनाव अदालत में फंस गया। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने बिना ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूला लागू किए चुनाव कराने के सरकार के फैसले को खारिज कर दिया था। इसके खिलाफ मध्य प्रदेश सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई थी। मई, 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य चुनाव आयोग को बिना ओबीसी आरक्षण लागू किए चुनाव कराने का आदेश दे दिया। हालांकि, बाद में सरकार ने राज्य पिछड़ा आयोग का गठन किया और उसकी सिफारिशों के आधार पर ही चुनाव हुए। 
 

4. झारखंड: यहां भी राज्य सरकार ने बिना पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किए नगर निकाय चुनाव की घोषणा कर दी थी। इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। तब हेमंत सोरेन सरकार ने कोर्ट से आयोग के गठन के लिए समय मांगा। अब आयोग का गठन हो चुका है। अब इसी की रिपोर्ट के आधार पर यहां स्थानीय निकाय चुनाव होंगे।  
 

योगी सरकार के पास क्या बचा है विकल्प? 
जिन-जिन राज्यों में ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूले को नजरअंदाज किया गया, उन सभी जगहों पर नगर निकाय चुनाव फंस गया। एक्सपर्ट्स कहते हैं कि ऐसे में यूपी सरकार के पास भी ज्यादा विकल्प नहीं बचा है। यूपी सरकार को भी पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन करना होगा और इसी की रिपोर्ट के आधार पर ही नगर निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण लागू हो सकता है। अगर बिना आरक्षण के सरकार चुनाव नहीं कराना चाहती है तो उसे जल्द से जल्द इस आयोग का गठन करना होगा। हालांकि, सरकार को आयोग के गठन के लिए जरूर सुप्रीम कोर्ट से राहत मिल सकती है।

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