वैदिक विज्ञान की वैश्विक प्रासंगिकता : ज्ञान, समय और चेतना का संगम

आज जब विज्ञान और अध्यात्म दो अलग-अलग धाराओं की तरह प्रतीत होते हैं, वैदिक विज्ञान (Vedic Science) इन दोनों को एक सूत्र में पिरोने का कार्य कर रहा है। इस अंक (Vol. 27, Issue: April–June 2025) का मुख्य उद्देश्य यही है — कि आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टि से वैदिक परंपरा का पुनर्पाठ हो, और यह प्रदर्शित किया जा सके कि वैदिक विचार केवल धार्मिक नहीं, बल्कि वैज्ञानिक एवं वैश्विक दृष्टि से भी अत्यंत प्रासंगिक हैं
प्रो. डॉ. रवि प्रकाश आर्य

मुख्य विशेष लेख: “महर्षि दयानन्द सरस्वती द्वारा प्रतिपादित सृष्टि संवत्”

इस अंक का प्रमुख आकर्षण प्रो. डॉ. रवि प्रकाश आर्य का शोध-पत्र है, जिसमें महर्षि दयानन्द सरस्वती द्वारा प्रतिपादित सृष्टि संवत् (1,960,853,127 वर्ष) का गहन शास्त्रीय और वैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है।
यह लेख दर्शाता है कि भारतीय कालगणना केवल पौराणिक नहीं, बल्कि सटीक गणितीय और खगोलशास्त्रीय सिद्धांतों पर आधारित है।
स्वामी दयानन्द द्वारा प्रस्तुत सृष्टि संवत् का आधार है:

  • ऋग्वेद और मनुस्मृति की गणनाएँ

  • 6 महायुगों में पर्यावरण, वनस्पति और मानव सृष्टि का विकास

  • कल्प, मन्वंतर और महायुग की वैज्ञानिक परिभाषाएँ

यह लेख आधुनिक काल में वेद-आधारित समय विज्ञान की पुनर्स्थापना की दिशा में एक मील का पत्थर सिद्ध होगा।

  1. प्रकाशन Indian Foundation for Vedic Science द्वारा किया गया है।

  2. सहयोगी संस्थाएँ:

    • Srimaharshi Research Institute of Vedic Technology (आंध्र प्रदेश)

    • Vedic Science Virtual Vishva-Vidyapeetham (शिकागो, अमेरिका)

  3. संपादकीय मंडल में भारत, जर्मनी, ब्राज़ील, दक्षिण अफ्रीका, मॉरीशस आदि देशों के विद्वान शामिल हैं।

🔹 अन्य शोध-पत्रों का सार

  1. Ancient Indian Quantum Concept
    भारतीय दर्शन में “कण” और “ऊर्जा” के वैदिक संकेतों का अध्ययन। यह लेख आधुनिक क्वांटम थ्योरी और वैदिक तत्त्वज्ञान के बीच समानता दर्शाता है।

  2. Yoga
    योग को केवल स्वास्थ्य के अभ्यास के रूप में नहीं, बल्कि आत्म-साक्षात्कार की वैज्ञानिक प्रक्रिया के रूप में प्रस्तुत किया गया है।

  3. Astronomy in Viṣṇu Purāṇa
    विष्णु पुराण में निहित खगोलशास्त्रीय सिद्धांतों का विश्लेषण, जो ग्रहों की गति और ब्रह्मांडीय चक्रों की गहराई को प्रकट करते हैं।

  4. From Vedas to Labs: The Evolution of Scientific Thought
    यह लेख दर्शाता है कि वैदिक विचार प्रयोगशाला तक कैसे पहुँचे और आधुनिक विज्ञान ने किस प्रकार वैदिक संकल्पनाओं की पुनर्पुष्टि की।

  5. Ancient Indian References of Americas
    प्राचीन भारत और अमेरिका महाद्वीप के सांस्कृतिक-संबंधों के वैदिक प्रमाणों की खोज।

  6. पु. महायोगों की वैज्ञानिकता
    योग के विविध प्रकारों का गणितीय और दार्शनिक विवेचन।

  7. वर्तमान परिप्रेक्ष्य में संस्कृत का उदय – एक समीक्षा
    संस्कृत भाषा की आधुनिक समय में पुनःस्थापना और वैश्विक स्वीकार्यता पर प्रकाश।

  8. उपनिषदों का शास्त्रीय विवेचन
    उपनिषदों की ज्ञानमीमांसा को आधुनिक विज्ञान के आलोक में देखा गया है।

  9. मानवजीवन में यज्ञ-वेदी का उपादेयता
    यज्ञ को पर्यावरणीय एवं मानसिक शुद्धि का साधन बताया गया है।

  10. Buddhism in Odisha: An Artist’s View
    ओडिशा में बौद्ध कला और संस्कृति का दृश्यात्मक अध्ययन।

  11. काल का स्वरूप
    समय की वैदिक व्याख्या — भौतिक, दार्शनिक और आध्यात्मिक तीनों स्तरों पर।

🔹 वैदिक विज्ञान का योगदान

इस अंक के सभी शोध यह स्पष्ट करते हैं कि:

  • वैदिक परंपरा केवल अध्यात्मिक नहीं, बल्कि वैज्ञानिक तर्कशास्त्र पर आधारित है।

  • भारतीय कालगणना, खगोलशास्त्र, दर्शन और चिकित्सा में अनुपम बौद्धिक गहराई है।

  • आधुनिक विज्ञान के साथ संवाद संभव है, यदि हम वेदों को अनुभवजन्य दृष्टि से समझें।

🔹 संपादकीय संदेश

वर्तमान युग में जब ज्ञान की बहसें अक्सर भौतिकता तक सीमित हो जाती हैं, वैदिक विज्ञान हमें यह स्मरण कराता है कि ज्ञान की पूर्णता तभी संभव है जब आध्यात्मिकता, नैतिकता और वैज्ञानिकता एक साथ चलें।
इस अंक का उद्देश्य केवल वैदिक विचारों को पुनः प्रस्तुत करना नहीं, बल्कि उनकी व्यावहारिक उपयोगिता को आधुनिक समाज के समक्ष स्थापित करना है।

“Vedic Science” पत्रिका भारतीय वैदिक परंपरा को वैज्ञानिक विमर्श के केंद्र में लाने का निरंतर प्रयास कर रही है।
हमारा विश्वास है कि इस अंक के शोध-पत्र न केवल विद्वानों को नए विचार देंगे, बल्कि युवा पीढ़ी को यह प्रेरणा देंगे कि वेद ज्ञान शाश्वत है और उसका वैज्ञानिक पुनर्पाठ आज भी आवश्यक है।

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