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मुजफ्फरपुर के किसान नालंदा में आकर मधुमक्खी पालन कर रहे हैं। सालाना लाखों की कमाई करते हैं

मुजफ्फरपुर के खेमाईपट्टी के रहने वाले पप्पू कहते हैं कि फसलों के सीजन के साथ उन्हें जगह भी बदलनी पड़ती है। ऐसा नहीं करने पर मधुमक्खियों के समक्ष भोजन का संकट उत्पन्न हो जाता है। साथ ही मधु का उत्पादन भी प्रभावित होता है। यहीं कारण है कि सालभर एक जिले से दूसरे जिले का सफर तय करना पड़ता है।

Sunil Shukla

वे बताते हैं कि मधुपालन में फायदे तो बहुत हैं। लेकिन, परेशानियां भी अधिक है। वे बताते हैं कि मौसम के साथ कभी मुजफ्फरपुर तो कभी नालंदा आते है। बिहार में फूलों की कमी होने पर यूपी, दिल्ली,उड़ीसा और राजस्थान, तक का सफर मधुमक्खियों के साथ करना पड़ता है।

ब्रांडिंग न कर पाने से नुकसान

मधुपालक पप्पू कुमार कहते हैं कि मधु की ब्रांडिंग न कर पाने के कारण मेहनत के अनुसार दाम नहीं मिल पाता है। जबकि, उनके यहां से मधु खरीदकर कंपनी वाले उसकी ब्रांडिग करते हैं और अधिक मुनाफा कमा लेते हैं। वर्तमान में ऐसे कारोबारी 60 रुपए से लेकर 150 रुपए किलो पालकों के यहां से मधु खरीदते हैं। जबकि, बाजार में वे 300 से 400 रुपए किलो तक बेचते हैं। यह समस्या किसी एक पालक के साथ नहीं है। अमूमन, बिहार के बहुत कम ही पालक हैं जो मधु की ब्रांडिंग करते हैं।

एक बक्से से 8 किलो तक शहद

सीजन और फूलों की खेती का साथ मिलता है तो एक बक्से से आठ किलो तक शहद मिलता है। 300 बक्सों से सालाना तीन से चार लाख तक आमदनी हो जाती है। पप्पू बताते हैं कि मधुमक्खीपालन में कई समस्याएं भी आती हैं। खासकर ऑफ सीजन में मधुमक्खियों को जिंदा रखने के लिए चीनी का घोल पिलाना पड़ता है। ताकि, मधुमक्खियों के स्वास्थ्य पर प्रतिकुल असर न पड़े।

रानी की देखरेख सैकड़ों नर मक्खियां

पालक बताते हैं कि प्रत्येक बक्से में एक रानी मक्खी रहती है। जबकि, उसकी देखरेख के लिए सैकड़ों नर मक्खियां रहते हैं। मधुमक्खियों की जीवनशैली में अनोखी है। रानी की सुरक्षा के लिए कई लेयर पर नर मक्खियों की टीमें रहती हैं। इसे सिपाही कहा जाता है। रानी मक्खी से मिलन वही नर करता है जो सबसे ताकतवर होता है।

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