Japan is away from NATO summit: China said- learn everything from history, Prime Minister of Japan, regional peace should not be at stake 30/05/2023
Bharat

NATO समिट से दूर रहे जापान:चीन ने कहा- इतिहास से सबक सीखें जापान के प्रधानमंत्री, इलाके के अमन को दांव पर न लगाएं

Sunil Shukla

बयान में आगे कहा गया- जापान समेत हम सभी को इतिहास से सबक लेना चाहिए। किसी भी हरकत से इस इलाके का अमन दांव पर लग सकता है और इससे सभी को नुकसान होने का खतरा है।

जुलाई में होगी समिट

  • NATO समिट जुलाई में लिथुआनिया में होने वाली है। रूस-यूक्रेन जंग को एक साल से ज्यादा हो चुका है। इस लिहाज से यह समिट काफी अहम मानी जा रही है। जापान वैसे तो NATO का हिस्सा नहीं है, लेकिन अमेरिका और दूसरे सदस्य देशों ने उसे स्पेशल इनविटेशन दिया है।

  • जापान सरकार कह चुकी है कि प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा इस समिट में हिस्सा लेने के लिए लिथुआनिया जा सकते हैं। इसके बाद से चीन सरकार जापान पर दबाव बनाने के लिए तमाम हथकंडे इस्तेमाल कर रही है।

  • माना जा रहा है कि जापान और NATO के बाकी मेंबर्स टेक्नोलॉजी और इंटेलिजेंस शेयरिंग पर नए सिरे से कोई समझौता कर सकते हैं। इसके अलावा NATO प्लस पर भी विचार किया जा सकता है। इसमें भारत और जापान को इसमें शामिल करने का प्रपोजल दिया जा सकता है।

चीन क्या कह रहा है

  • चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता माओ निंग ने सोमवार को कहा- जापान को इस NATO समिट में हिस्सा लेने से बचना चाहिए। अगर फुमियो किशिदा समिट में हिस्सा लेने के लिए लिथुआनिया जाते हैं तो इससे चीन और जापान के रिश्ते खराब हो सकते हैं।

  • निंग ने आगे कहा- इस तरह के किसी प्लेटफॉर्म में जाने से इस रीजन की पीस और स्टेबिलिटी पर गंभीर असर पड़ेगा। हम सभी को इस तरह के हालात से बचने के लिए हाई अलर्ट पर रहना होगा। इतिहास से सबक सीखा जाए, ताकि किसी को भारी नुकसान न उठाना पड़े।

  • चीन की यह वॉर्निंग जापान को डराने के लिए है। दूसरी तरफ, जापान सरकार इशारा दे चुकी है किशिदा समिट में हिस्सा जरूर लेंगे। NATO के सेक्रेटरी जनरल जेन्स स्टोलनबर्ग भी कह चुके हैं कि किशिदा को परेशान होने की जरूरत नहीं है। NATO चाहता है कि उसका एक रीजनल ऑफिस अब जापान की राजधानी टोक्यो में भी खोला जाना चाहिए।

NATO और तुर्की

  • NATO का पूरा नाम नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन है। यह यूरोप और उत्तरी अमेरिकी देशों का एक सैन्य और राजनीतिक गठबंधन है।

  • NATO की स्थापना 4 अप्रैल 1949 को हुई थी। इसका हेडक्वॉर्टर बेल्जियम के ब्रसेल्स में है।

  • NATO की स्थापना के समय अमेरिका समेत 12 देश इसके सदस्य थे। अब 30 सदस्य देश हैं, जिनमें 28 यूरोपीय और दो उत्तर अमेरिकी देश हैं।

  • इस संगठन की सबसे बड़ी जिम्मेदारी NATO देशों और उसकी आबादी की रक्षा करना है।

  • NATO के आर्टिकल 5 के मुताबिक, इसके किसी भी सदस्य देश पर हमले को NATO के सभी देशों पर हमला माना जाएगा।

  • 1952 में NATO से जुड़ा तुर्की इसका एकमात्र मुस्लिम सदस्य देश है।

NATO की नींव कैसे पड़ी थी

  • दूसरे विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ को रोकने के लिए अमेरिकी और यूरोपीय देशों ने एक सैन्य गठबंधन बनाया था, जिसे NATO के नाम से जाना जाता है।

  • दूसरे विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ और अमेरिका दो सबसे बड़ी ताकत बनकर उभरे, जो दुनिया पर अपना दबदबा कायम करना चाहते थे। इससे अमेरिका और सोवियत संघ के संबंध बिगड़ने लगे और उनके बीच कोल्ड वॉर की शुरुआत हुई।

  • सोवियत संघ की कम्युनिस्ट सरकार दूसरे विश्व युद्ध के बाद कमजोर पड़ चुके यूरोपीय देशों पर अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहती थी।

  • सोवियत संघ की योजना तुर्की और ग्रीस पर दबदबा बनाने की थी। तुर्की और ग्रीस पर पर कंट्रोल से सोवियत संघ काला सागर के जरिए होने वाले दुनिया के व्यापार को नियंत्रित करना चाहता था।

  • सोवियत संघ की इन विस्तारवादी नीतियों से पश्चिमी देशों और अमेरिका से उसके संबंध पूरी तरह खराब हो गए।

  • आखिरकार यूरोप में सोवियत संघ के प्रसार को रोकने के लिए यूरोपीय देशों और अमेरिका ने मिलकर NATO की नींव डाली।

रूस-यूक्रेन विवाद की वजह बना NATO

  • 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद NATO ने खासतौर पर यूरोप और सोवियत संघ का हिस्सा रहे देशों के बीच तेजी से प्रसार किया।

  • 2004 में NATO से सोवियत संघ का हिस्सा रहे तीन देश- लातविया, एस्तोनिया और लिथुआनिया जुड़े, ये तीनों ही देश रूस के सीमावर्ती देश हैं।

  • पोलैंड (1999), रोमानिया (2004) और बुल्गारिया (2004) जैसे यूरोपीय देश भी NATO के सदस्य बन चुके हैं। ये सभी देश रूस के आसपास हैं और उनके और रूस के बीच में केवल यूक्रेन पड़ता है।

  • यूक्रेन पिछले कई वर्षों से NATO से जुड़ने की कोशिश करता रहा है। उसकी हालिया कोशिश की वजह से ही रूस ने यूक्रेन पर हमला बोल दिया है।

  • यूक्रेन की रूस के साथ 2200 किमी से ज्यादा लंबी सीमा है। रूस का मानना है कि अगर यूक्रेन NATO से जुड़ता है तो NATO सेनाएं यूक्रेन के बहाने रूसी सीमा तक पहुंच जाएंगी।

  • यूक्रेन के NATO से जुड़ने पर रूस की राजधानी मॉस्को की पश्चिमी देशों से दूरी केवल 640 किलोमीटर रह जाएगी। अभी ये दूरी करीब 1600 किलोमीटर है। रूस चाहता है कि यूक्रेन ये गांरटी दे कि वह कभी भी NATO से नहीं जुड़ेगा।

  • अमेरिका NATO के जरिए रूस को चारों ओर से घेर रहा है। सोवियत संघ के टूटने के बाद 14 यूरोपीय देश NATO में शामिल हो चुके हैं। अब वह यूक्रेन को भी NATO में शामिल करना चाहता है।

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