Hindenburg Research's Nat Anderson is hero or villain, understand it like this 17/02/2023
Bharat

हिंडनबर्ग रिसर्च के नेट एंडरसन हीरो हैं या विलेन, इसे ऐसे समझें

हिंडनबर्ग जैसी शॉर्ट सेलिंग कंपनियाँ अपने रिसर्च से निवेशकों का पैसा डूबने से बचाती हैं जैसा कि उनका दावा है, या फिर वो शेयर बाज़ार को नुक़सान पहुँचाकर अपनी जेब भरती हैं?

Sunil Shukla
  • नेट एंडरसन ने 2017 में हिंडनबर्ग रिसर्च की स्थापना की थी.

  • हिंडनबर्ग ने अब तक कई अमेरिकी कंपनियों को निशाना बनाया है.

  • कंपनी का नाम नाज़ी जर्मनी के एक नाकाम स्पेस प्रोजेक्ट पर रखा गया है.

  • अदानी वाली रिपोर्ट हिंडनबर्ग की 19वीं रिपोर्ट है.

  • हिंडनबर्ग का कहना है कि अदानी समूह ने 88 में से 62 सवालों के जवाब नहीं दिए हैं.

ये बहस अमरीका में सालों से चल रही है जहाँ हिंडनबर्ग जैसी कंपनियाँ क़ानूनन काम कर रही हैं. उन्हें पसंद करने वाले भी हैं और उनके दुश्मनों की भी कमी नहीं है.

हिंडनबर्ग ने अपनी रिपोर्ट की सनसनीखेज़ हेडलाइन दी थी--'कॉर्पोरेट इतिहास में सबसे बड़ा धोखा', अदानी समूह ने रिपोर्ट को झूठ क़रार दिया.

हिंडनबर्ग के आलोचक कह रहे हैं कि उसकी रिपोर्ट 'तेज़ी से आगे बढ़ते भारत को नीचे खींचने की कोशिश' है.

आम तौर पर शेयर के दाम ऊपर जाने पर पैसा बनता है, लेकिन शॉर्ट सेलिंग में दाम गिरने पर पैसा कमाया जाता है. इसमें किसी ख़ास शेयर में गिरावट के अनुमान पर दांव लगाया जाता है.

दरअसल, हिंडनबर्ग जैसे ऐक्टिविस्ट शॉर्ट सेलर्स कुछ ख़ास कंपनियां के शेयर की क़ीमत में गिरावट पर दांव लगाते हैं, फिर उनके बारे में रिपोर्ट छापकर निशाना साधते हैं.

वे इस काम के लिए ऐसी कंपनियों को चुनते हैं जिनके बारे में उन्हें लगता है कि उनके शेयरों की क़ीमत वास्तविक मूल्य से बहुत ज़्यादा है, या फिर उनकी नज़र में वो कंपनी अपने शेयर-धारकों को धोखा दे रही है.

ऐक्टिविस्ट शॉर्ट सेलर क्या काम करते हैं?

नेट एंडरसन ने साल 2017 में हिंडनबर्ग रिसर्च की स्थापना की थी.

अमेरिका की एक शॉर्ट सेलिंग कंपनी स्कॉर्पियन कैपिटल के चीफ़ इन्वेस्टमेंट ऑफ़िसर कीर कैलॉन के मुताबिक़, हिंडनबर्ग प्रतिष्ठित संस्था है और उनकी रिसर्च को भरोसेमंद माना जाता है. उसकी वजह से अमेरिका में कई मौक़ों पर भ्रष्ट कंपनियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई हुई है.

न्यूयॉर्क से शॉर्ट सेलिंग पर न्यूज़ लेटर "द बीयर केव" निकालने वाले एडविन डॉर्सी बताते हैं हिंडनबर्ग रिसर्च जैसी ऐक्टिविस्ट शॉर्ट सेलिंग फ़र्म के रिपोर्ट जारी करने के दो प्रमुख कारण होते हैं. पहला, ग़लत काम की कलई खोलकर मुनाफ़ा कमाना और दूसरा, न्याय और उत्तरदायित्व सुनिश्चित करना.

एडविन डॉर्सी कहते हैं, "ये देखकर बेहद निराशा होती है कि चंद लोग शेयरधारकों की क़ीमत पर अमीर हो रहे हैं, और शायद धोखेबाज़ी कर रहे हैं. ऐक्टिविस्ट शॉर्ट सेलिंग की रिपोर्टें एक तरह की खोजी पत्रकारिता है, लेकिन मुनाफ़े की प्रेरणा थोड़ी अलग है. मैं नेट और हिंडनबर्ग को काफ़ी सराहनीय मानता हूँ."

ऐक्टिविस्ट शॉर्ट सेलर रिपोर्ट के साथ-साथ सोशल मीडिया का भी जमकर इस्तेमाल करते हैं, लेकिन कई आम निवेशक ऐक्टिविस्ट शॉर्ट सेलिंग फ़र्म्स को पसंद नहीं करते क्योंकि दाम नीचे गिरने से उनके निवेश पर बुरा असर पड़ता है.

आश्चर्च की बात नहीं कि कई कंपनियां भी उन्हें पसंद नहीं करतीं. साल 2021 में एलन मस्क ने शॉर्ट सेलिंग को एक घोटाला बताया था.

शॉर्ट सेलिंग कंपनी स्कार्पियन कैपिटल के चीफ़ इन्वेस्टमेंट ऑफ़िसर कीर कैलॉन अदानी मामले को भारत का 'एनरॉन मोमेंट' बताते हैं.

वो कहते हैं, "ये रोचक बात है कि अडानी और एनरॉन दोनो इन्फ़्रास्ट्रक्चर कंपनियां हैं जिनके मज़बूत राजनीतिक संबंध रहे हैं."

साल 2001 में एनरॉन भारी आर्थिक नुक़सान छिपाने के बाद दीवालिया हो गई थी, उस वक्त अमेरिका के राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के एनरॉन प्रमुख केन ले और कंपनी अधिकारियों से नज़दीकी संबंध थे.

अदानी की आर्थिक हालत एनरॉन जैसी तो नहीं है, लेकिन उन पर केन ले की तरह सरकार से अतिरिक्त निकटता के आरोप लग रहे हैं.

कैलॉन कहते हैं, "मज़बूत और साफ़-सुथरी कंपनियों को शॉर्ट सेलर रिपोर्टों से कोई फ़र्क नहीं पड़ता. अगर कोई व्यक्ति गूगल, फ़ेसबुक या माइक्रोसॉफ़्ट के बारे में लिखेगा तो लोग उस पर हँसेंगे और स्टॉक पर कोई असर नहीं पड़ेगा."

हिंडनबर्ग प्रमुख नेट ऐंडरसन के बारे में वो कहते हैं, "उनकी ज़बर्दस्त साख है. उनके शोध की विश्वसनीयता है. उसका बहुत असर हुआ है."

अमेरिका में कोलंबिया लॉ स्कूल के प्रोफ़ेसर जोशुआ मिट्स ने शॉर्ट सेलिंग की आलोचना करने वाला एक चर्चित पेपर 'शॉर्ट ऐंड डिस्टॉर्ट' लिखा.

जोशुआ कहते हैं, "जिस वजह से वॉल स्ट्रीट में कई लोग नेट एंडरसन की इज़्ज़त करते हैं वो ये है कि वो अपने बारे में खुलकर बोलते हैं. इसका ये मतलब नहीं कि खुलकर बोलने वाला सच ही बोल रहा हो. कुछ लोगों ने उन पर सवाल उठाए हैं, लेकिन उन्होंने हाल के सालों में अमेरिका की सबसे बड़ी धोखेबाज़ियों को उजागर किया है."

अमेरिका में जस्टिस डिपार्टमेंट को सलाह देने वाले जोशुआ मिट्स कहते हैं, "हम कहते हैं कि कंपनियों को पारदर्शी होना चाहिए, सीधी बात करनी चाहिए कि वो निवेशकों के पैसे से क्या कर रहे हैं. उसी तरह हमें ऐक्टिविस्ट शॉर्ट सेलर्स से भी कहना चाहिए कि वो पारदर्शी रहें और सीधी बात करें."

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