10 की उम्र में हाइपरटेंशन 10 की उम्र में हाइपरटेंशन
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10 की उम्र में हाइपरटेंशन:25 तक हार्ट अटैक, बिना गर्मी पसीना आए, 3 बार हाई BP निकले तो सावधान, अपनाएं SPOS-PHS फॉर्मूला

'मुझे पतंग का बहुत शौक था। पतंग का जो मांझा होता है, उलझकर गुच्छा बन जाता है। धीरे-धीरे एक-एक तार को पकड़कर उसे सुलझाना होता है। थोड़े से सब्र से इतना बड़ा गुच्छा भी आराम से खुल जाएगा। हमें भी समाधान आराम से निकालना है। अगर माइक्रो मैनेजमेंट से काम करेंगे तो पढ़ाई का तनाव नहीं रहेगा।’

Sunil Shukla

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को ‘परीक्षा पे चर्चा’ में छात्रों को ये सलाह तब दी, जब पटना से प्रियंका कुमारी, मदुरई से अश्विनी, दिल्ली से नवतेज ने PM से कहा- नतीजे अच्छे न हों तो परिवार की निराशा से कैसे निपटें? बच्चों में तनाव इस हद तक हो रहा है कि वो आजकल हाथ काट ले रहे हैं?

परीक्षा बच्चों में हाइपरटेंशन का बड़ा कारण है। विषय की गंभीरता को देखते हुए आज हम इस मामले में विशेषज्ञों और समाजशास्त्रियों की राय जानेंगे।

10-12 साल के बच्चे भी हाइपरटेंशन की चपेट में

16 साल का अंकित (नाम बदला हुआ) 12वीं में है। उसका रूटीन इस तरह है-

‘सुबह 8 बजे उठना। आधे घंटे में तैयार होकर स्कूल जाना। स्कूल से 4 बजे घर लौटकर दो घंटे वीडियो गेम खेलना। शाम 6 बजे से 8 बजे तक कोचिंग क्लास में रहना और लौटकर पिज्जा, बर्गर और कोल्ड ड्रिंक के साथ मोबाइल पर वेब सीरीज देखना।

महीने भर पहले बुखार और पेटदर्द की शिकायत पर उसे डॉक्टर से दिखाया गया। चेकअप के दौरान उसके ब्लड प्रेशर की भी जांच हुई जिसमें उसे स्टेज 2 हाइपरटेंशन होने का पता चला।

मयूर विहार, दिल्ली के रहने वाले अंकित गुप्ता की लाइफस्टाइल वैसी ही है जैसे आजकल किसी आम भारतीय बच्चे की है। पिज्जा-बर्गर, पोटैटो चिप्स, कोल्ड ड्रिंक अब डाइट का हिस्सा बन गए हैं। पढ़ाई के प्रेशर के साथ इस तरह की डाइट कम उम्र के बच्चों को बीमार बना रही है।

भारत में 10 से 12 साल के 35% बच्चे और 13 वर्ष की उम्र के ऊपर के 25% बच्चे हाइपरटेंशन की चपेट में हैं। जर्नल ऑफ अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन (JAMA) के मुताबिक भारत में हर 3 या 4 बच्चों में से 1 को हाई ब्लड प्रेशर है। 13 साल से ऊपर के बच्चों में यदि बीपी 130/80 से ऊपर है तो इसे हाइपरटेंशन माना जाता है।

अगर तीन बार बच्चे का BP ज्यादा निकले तो हो जाएं अलर्ट

बेंगलुरु स्थित सेंट जॉन मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में डिपार्टमेंट ऑफ पीडियाट्रिक नेफ्रोलॉजी के हेड डॉ. अनिल वासुदेवन बताते हैं कि डॉक्टर पास पहली बार पहुंचे बच्चे का तीन बार ब्लड प्रेशर जांचा गया। यदि तीन अलग-अलग फ्रीक्वेंट विजिट पर भी बीपी अधिक मिलता है तो इसे हाइपरटेंशन कहा जाता है। इस सर्वे में बच्चों में हाई बीपी का पता चला।

शहरों नहीं, कस्बों और गांवों के बच्चों तक पहुंच गया हाइपरटेंशन

सीताराम भरतिया इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड रिसर्च में पीडियाट्रिक्स एंड क्लीनिकल एपिडेमियोलॉजी, दिल्ली के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. हर्षपाल सिंह सचदेव ने दैनिक भास्कर को बताया कि बच्चों में हाइपरटेंशन केवल शहरी इलाकों में ही नहीं, बल्कि यह ग्रामीण इलाकों में भी है। यह भी एक मिथ है कि शहरी इलाकों के ओवरवेट बच्चों को ही हाई ब्लड प्रेशर हो सकता है।

बचपन में हाइपरटेंशन तो 25 की उम्र में किडनी और दिल की बीमारियां

डॉ. हर्षपाल बताते हैं कि हम अक्सर यह कहते हैं कि अमेरिका, यूरोप के देशों में बच्चों में ओबेसिटी होती है, इसलिए उनमें हाइपरटेंशन अधिक होता है। इस मिथ के कारण ही हमारे देश में ओवरवेट बच्चे को हेल्दी मानकर उसके वजन को इग्नोर करते हैं और उसका हम ब्लड प्रेशर चेक नहीं करवाते।

किशोरावस्था में ही हाइपरटेंशन से पीड़ित होने वाले बच्चों को उम्र बढ़ने पर कई तरह के कॉम्प्लिकेशंस होने लगते हैं। यही कारण है कि देश में 25 से 40 वर्ष के बीच के युवाओं को हार्ट अटैक, किडनी की बीमारी और ब्रेन हैमरेज जैसी समस्याएं झेलनी पड़ती हैं।

अब बच्चों को भी BP की दवा खानी पड़ रही है। यह सुनने में भी अटपटा लगता है पर सच है। बच्चों को हाई ब्लड प्रेशर क्यों हो रहा, इसके कारणों की पड़ताल करेंगे लेकिन इससे पहले हाइपरटेंशन की बुनियादी बातें समझ लेते हैं।

बच्चों में अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड खाने की आदत बढ़ी, 15 साल से ऐसा

डॉ. हर्षपाल बताते हैं कि पिछले 15 वर्षों में भारत में डाइट पैटर्न में काफी बदलाव हुआ है। खासकर बच्चों में रेडी टु ईट फूड यानी अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड खाने की लत लग गई है। इन खानों में बहुत ज्यादा प्रिजर्वेटिव्स भी मिलाए जाते हैं जो बच्चों की सेहत पर बुरा असर डालते हैं।

स्नैक्स में नमक और चीनी होती है। चिप्स, कैंडी, सोडा, कोल्ड ड्रिंक्स, एनर्जी ड्रिंक, पैकेज्ड जूस, सूप, नूडल्स के साथ पिज्जा, हॉटडॉग, बर्गर जैसे रेडी टु ईट फूड और ड्रिंक लेने से बच्चों में ब्लड प्रेशर बढ़ रहा।

रांची के मेडिका अस्पताल में चीफ डाइटीशियन डॉ. विजयश्री प्रसाद बताती हैं कि अल्ट्रा प्रोसेस्ड खाना नशे की तरह होता है। उन्हें नूडल्स या पिज्जा न मिले तो वे झुंझला उठते हैं।

जितना ज्यादा नमक, उतना ज्यादा हाइपरटेंशन

द जर्नल ऑफ अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन में प्रकाशित रिपोर्ट बताती है कि भारत में अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड खाने से डाइट में नमक की मात्रा अधिक ली जा रही है। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, पूरी दुनिया में भारतीय लोग पहले से ही नमक की अधिक मात्रा लेते हैं। हर व्यक्ति को डाइट में 3 ग्राम से अधिक नमक नहीं लेना चाहिए, लेकिन भारत में एक व्यक्ति के खाने में औसतन 8 से 10 ग्राम तक नमक होता है।

इसी रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत के आठ राज्यों में दूसरे राज्यों की तुलना में हाइपरटेंशन से पीड़ित बच्चे 35% अधिक हैं। ये राज्य हैं छत्तीसगढ़, ओडिशा, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा और नगालैंड।

दूसरी तरफ, द नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (NSSO) के अनुसार, इन आठ राज्यों में देश के दूसरे हिस्सों की तुलना में लोग अपनी डाइट में सबसे अधिक नमक खाते हैं।

बच्चों में आमतौर पर हाइपरटेंशन का कोई लक्षण नहीं दिखता। यह ब्लडप्रेशर की जांच से ही पता चल पाता है। हालांकि जब हाइपरटेंशन के दूसरे स्टेज में बच्चा पहुंचता तो कुछ लक्षण दिखते हैं। इसे ग्रैफिक से जानते हैं।

फिजिकल एक्टिविटी घटने से मेटाबॉलिज्म पर असर

द जर्नल ऑफ स्कूल हेल्थ में प्रोफेसर शाहिना प्रधान बताती हैं कि स्क्रीन टाइम बढ़ने से बच्चों की आंखों पर सबसे ज्यादा असर पड़ा। डिजिटल आई स्ट्रेन अमंग किड्स (DESK) की ओर से राजस्थान और मध्यप्रदेश में हुई रिसर्च में पता चला कि बच्चों में पहले स्क्रीन टाइम 1.9 घंटे था, जो बढ़कर 3.9 घंटे हो गया। डॉ. वरुण बताते हैं कि इससे बच्चों के शरीर का मेटाबॉलिज्म प्रभावित हुआ और उनमें हाइपरटेंशन का कारण बना। फिजिकल एक्टिविटी नहीं के बराबर रही।

सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ साइकेट्री के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. वरुण एस मेहता का भी ये मानना है कि कोरोना के बाद बच्चों को मोबाइल से चिपके रहने की आदत लगी। बच्चों ने एक ही पोजीशन में बैठकर घंटों टीवी देखा। उनके गर्दन और कंधे पर दबाव पड़ा। फिजिकल एक्टिविटी नहीं हुई और ओवरइटिंग ने बच्चों को मोटापे का शिकार बनाया।

हाइपरटेंशन साइलेंट किलर है जो शरीर को नुकसान पहुंचाता है। जरूरी है कि शुरुआती स्टेज में ही हाइपरटेंशन की पहचान कर ली जाए। बच्चों में किस उम्र में हाइपरटेंशन हो सकता है, इसे ग्रैफिक से समझते हैं।

बिना गर्मी के भी बच्चों को पसीना आए तो हाइपरटेंशन का रिस्क

सेंट जॉन मेडिकल कॉलेज, बेंगलुरु में फिजियोलॉजी के प्रोफेसर डॉ. अनुरा कुरपाद ने बताया कि ब्लड प्रेशर साइलेंट किलर है। किसी बच्चे को हाई बीपी है यह तब पता चलता है जब BP बहुत अधिक हो जाए। तब बच्चा कई तरह की शिकायत करता है-जैसे सिर भारी रहना, सामान्य मौसम में भी पसीना आना, चिड़चिड़ा होना, मेंटल स्टेट्स कमजोर होना, उल्टी होना। इसलिए बच्चों में जब यह लक्षण दिखें तो उनकी जांच करा ली जाए।

क्या प्यूबर्टी के दौरान भी बढ़ता है ब्लड प्रेशर

डॉ. अनुरा कुरपाद कहते हैं कि प्यूबर्टी के दौरान लड़के और लड़कियों के शरीर में हॉर्मोनल में बदलाव आते हैं। इसके कारण ब्लड प्रेशर बढ़ता है लेकिन यह बच्चे की उम्र, जेंडर और वजन पर निर्भर करता है। लेकिन यह उस स्तर तक नहीं पहुंचता कि उसे हाइपरटेंशन कहा जाए।

हर डाइट में सॉल्ट और शुगर मौजूद रहता है। लेकिन बच्चों की डाइट बदल गई है। रेडी टू इट फूड बच्चों को दी जा रही है। इनमें सॉल्ट और शुगर की मात्रा अधिक होती है। ये ग्रैफिक देख लेते हैं।

हाइपरटेंशन से बच्चों की किडनी पर सबसे ज्यादा असर

डॉ. वासुदेवन बताते हैं कि बच्चों में हाइपरटेंशन का सीधा असर उनकी किडनी पर पड़ता है। सामान्य रूप से उम्र, हाइट और जेंडर में बदलाव होने से ब्लड प्रेशर बढ़ता जाता है। बच्चे की उम्र जितनी बढ़ती जाएगी ब्लड प्रेशर उतना ही बढ़ता जाएगा। इसी तरह एक ही एज के लंबे बच्चों में छोटे बच्चों के मुकाबले ब्लड प्रेशर अधिक होता है।

पेरेंट्स अपनाएं SPOS और PHS का फॉर्मूला

डॉ. अनुरा कुरपाद कहते हैं कि पढ़ाई के प्रेशर से बच्चों को जूझना पड़ता है। उन पर अच्छा परफॉर्म करने का दबाव होता है। पेरेंट्स बच्चों से ऊंची उम्मीद लगाए रहते हैं। बच्चा प्रेशर में रहता है कि रिजल्ट उनके मुताबिक नहीं आया तो क्या होगा, यह उसके हाइपरटेंशन की वजह है।

पेरेंट्स को इस तनाव को दूर करने के लिए बच्चे के लाइफस्टाइल में बदलाव लाने होंगे। साथ ही कुछ टिप्स अपनानी होंगी। जैसे पेरेंट्स SPOS और PHS का फार्मूला अपना सकते हैं। SPOS यानी बच्चे का स्क्रीन टाइम घटाएं, प्रोसेस्ड फूड से उसे दूर रखें, बच्चा ओवरइटिंग न करें और सॉल्ट से परहेज करें। वहीं PHS यानी फिजिकल एक्टिविटी बढ़ाएं, हेल्दी डाइट लें और बच्चे की रेगुलर हाइपरटेंशन की स्क्रीनिंग की जाए।

जैसा कि प्रधानमंत्री नरेंद मोदी ने कहा है कि परीक्षा के दिनों में डिजिटल उपवास जरूरी है। उसी तरह डायटीशियन ये सलाह देते हैं कि बच्चे हाई साल्ट स्नैक्स जैसे चिप्स, बर्गर, पिज्जा से दूरी बरतें ताकि परीक्षा की टेंशन और हाइपरटेंशन उनकी पढ़ाई और सेहत में खलल न डालें।

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