Film 72 Hurons controversy, no number of Hurons in Quran: 08/07/2023
Bharat

फिल्म 72 हूरें विवाद, कुरान में हूरों की संख्या नहीं:स्कॉलर्स बोले- 72 हूरें वेस्टर्न राइटर्स की दिमागी उपज, आतंकियों को जहन्नुम भी नसीब नहीं

Sunil Shukla

कुछ इसे इस्लाम को बदनाम करने का जरिया करार दे रहे हैं। फिल्म मेकर्स का कहना है ये फिल्म किसी धर्म के खिलाफ नहीं है।

हमने इस्लामिक स्टडीज से जुड़े कुछ स्कॉलर्स से इस बारे में बात की। क्या वाकई कुरान में 72 हूरों का जिक्र है? ये आधा सच है। कुरान में हूरों का जिक्र है, लेकिन उनकी संख्या नहीं बताई गई है। इस्लामिक स्कॉलर्स का कहना है कि 72 हूरें वेस्टर्न राइटर्स की दिमागी उपज है। 

उन्होंने ही इसे प्रोपेगेंडा के तौर पर इस्तेमाल किया है। हूरें नेक काम करने वालों को मिलने का जिक्र है, ना कि हिंसा फैलाने वालों को।

72 हूरें के कॉन्सेप्ट को जानने के लिए हमने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के प्रो. ओबैदुल्लाह फहाद, दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया सेंट्रल यूनिवर्सिटी में इस्लामिक स्टडीज के प्रो. जुनैद हारिस, सहारनपुर में दारुल-उलूम देवबंद में हदीस के प्रोफेसर मौलाना अरशद मदनी और बरेली के दरगाह ए आला हजरत के मौलाना शाहबुद्दीन से बात की।

कुरान में हूरों का जिक्र कहां?
प्रो. ओबैदुल्लाह फहाद के मुताबिक, कुरान शरीफ के 44वें अध्याय की 51-54वीं आयत में हूर का जिक्र है।

कुरान शरीफ के 25वें पारे के सुहर अद-दुखन की 51वीं से 54वीं आयत में लिखा है-

51. इन्ना मुत्तकीना फी मकामिन आमीन

52. फी जन्नतिन व उयून

53. यलबसूना मिन सुंदुसिंव व इस्ताब्राकिम मुत्तकाबिलेन

54. कज़ालिका व ज़वज़नाहुम बुहूरें

इसके मायने हैं-

बेशक परहेजगार लोग अमन की जगह, यानी बागों और चश्मों में होंगे।

रेशम के कभी बारीक और कभी दबीज (मोटे) कपड़े पहने एक दूसरे के सामने बैठे होंगे।

वहां हम सुंदर, चमकदार आंखों वाली गोरी हूरों से मिलेंगे।

कुरान में सिर्फ हूरों का जिक्र, संख्या की कोई सीमा नहीं
कुरान में हूर के बारे में जो लिखा गया है, उसका हवाला देते हुए मौलाना अरशद मदनी कहते हैं- मान लीजिए कोई नेक दिल इंसान एक बदसूरत लड़की से उसके परिवार की खुशी के लिए शादी करता है और उसे खुश रखता है तो उसे जन्नत में एक खूबसूरत हूर दी जाती है।

इसी बारे में प्रो. ओबैदुल्लाह फहाद कहते हैं, 'कुरान में 72 या किसी संख्या का नहीं, सिर्फ हूरों का जिक्र है।'

कुरान में कहा गया है कि दुनिया में इंसान जिसे अच्छी नेमत मानता है, वो उसे जन्नत में मिलती है। ये भी कहा गया कि अगर किसी के साथ कुछ ज्यादती होती है, तो उसे खिलाफ कानून के दायरे में रहकर उसी चीज के लिए लड़ना चाहिए। फिर उसी के हिसाब से उनको वो नेमतें जन्नत में मिलेंगी, जिसकी जरूरत एक अच्छी जिंदगी के लिए होती है। बिना बुरे काम किए इंसान को अच्छाई पर कायम रहना चाहिए।

अगर कोई अधिक उम्र का इंसान जन्नत जाता है, तो उसकी उम्र को भी कम करके जवान बना दिया जाता है।

आमतौर से इंसान को एक अच्छी लड़की की जरूरत होती, जिससे अच्छी जिंदगी गुजरे। इसी को जन्नत के हवाले से हूर कहा गया है।

हदीस में अल्लाह के रसूल में ये साफ तौर पर लिखा गया है कि जो इंसान दुनिया में नेक काम करता है, उसे जन्नत मिलती है और बुरे काम करने वाले को दोजख (नरक) नसीब होता है। मौत के बाद जन्नत में इंसान की एक नई जिंदगी की शुरुआत होती है, जहां इंसान के सभी कर्मों का हिसाब होता है।

महिलाओं को भी कर्म के हिसाब से हूर मिलते हैं
मौलाना अरशद मदनी ने बताया, दुनिया में जो महिलाएं अल्लाह का इबाबत करती हैं और नेक रास्ते पर चलती हैं, आख्रत के जन्नत में उन्हें भी हूर मिलते हैं।

प्रो. ओबैदुल्लाह फहाद ने भी इस बात का सर्मथन करते हुए कहा- समान तौर पर जन्नत में मिलने वाली सभी अच्छी चीजें औरतों को भी मिलती हैं। दूसरी बात ये भी है कि अगर दुनिया में कोई नेक इंसान है और उसकी बीवी भी नेकदिल है, तो जन्नत में उसकी बीवी ही उसे हूर की शक्ल में मिलती है।

कुरान के हिसाब से अल्लाह की इबादत ना करने वाले काफिर हैं
मौलाना अरशद मदनी कहते हैं, कुरान के हिसाब से एक अल्लाह को ना मानने वाला काफिर कहलाता है। उन्होंने ये भी कहा कि कुरान में इस बात का जिक्र बिल्कुल नहीं है कि काफिर को मारने के बाद आख्रत का जन्नत और उसमें हूर मिलती हैं।

कुरान में हिंसा का समर्थन करना हराम है
मौलाना शाहबुद्दीन बताते हैं, कुरान के हिसाब से कोई भी इंसान अपने हाथ, पैर और लफ्जों से किसी को तकलीफ ना पहुंचाए। आतंकवाद जैसी चीज का कुरान में उल्लेख नहीं, लेकिन हिंसा कुरान में हराम है।

इस पर प्रो. ओबैदुल्लाह फहाद का कहना है, 'कुरान में हिंसा को बड़ी सख्ती के साथ मना किया गया है। कुछ लोग हैं जो इस चीज को गलत तरीके से लोगों के सामने दर्शाते हैं और उन्हें गलत काम के लिए उकसाते हैं। लोग सिर्फ निजी जरूरतों को पूरा करने के लिए तथ्यों को गलत दिखाते हैं।'

'हूरों के नाम पर लोगों को उकसाते हुए कहा जाता है कि मजहब के नाम पर गलत काम करो, लोगों का कत्ल करो, आखिर में जन्नत में एक नई खूबसूरत दुनिया मिलेगी। ये कॉन्सेप्ट हमारे कुरान में कहीं नहीं है। वेस्टर्न राइटर्स ने इन चीजों को गलत तरीके से हाइलाइट किया है।'

मौलाना शाहबुद्दीन ने इस बारे में कहा- ये बस एंटी इस्लामिक लोगों का काम है जो मासूम लोगों को हूरों के नाम पर बरगलाते हैं और आतंकवाद को फैलाते हैं।

मौत के बाद दूसरी दुनिया का नाम आख्रत, जन्नत और जहन्नुम दोनों इसी का हिस्सा
मौलाना अरशद मदनी बताते हैं कि अल्लाह अपनी इबादत के लिए इंसान को दुनिया में भेजते हैं। कुरान में बताया गया है कि मौत के बाद अल्लाह ने एक खूबसूरत दुनिया बनाई है, जिसे आख्रत कहा गया है। जन्नत और जहन्नुम दोनों इसी आख्रत का हिस्सा हैं।

वो ये भी कहते हैं कि जन्नत में ऐसी सुख-सुविधाएं मिलती हैं, जिसे ना कभी आंखों ने देखा होगा और ना ही कानों से सुना हो और ना कभी उसका ख्याल किसी के जहन में आया होगा। कुरान के हिसाब से ऐसी नेमत जन्नत में नेकदिल इंसान को मिलती है।

इस बारे में प्रो. जुनैद हारिस ने भी बताया है, आख्रत में कहा गया है कि जीवन में आपके साथ भले ही कितनी भी ज्यादती हुई हो, लेकिन आप कभी किसी का बुरा मत करिए।

फिल्म मेकर्स इस्लामिक फोबिया का शिकार इसलिए धर्म विशेष पर फिल्में बनाते
मौलाना शाहबुद्दीन ने ये भी कहा कि आज के फिल्म मेकर को इस्लामिक फोबिया हो गया है। इस वजह से बीते कुछ सालों में कश्मीर फाइल्स, केरला स्टोरी, अजमेर 92 और 72 हूरें जैसी फिल्में बन रही हैं।

इस सब्जेक्ट पर बनी फिल्म अच्छा कलेक्शन कर लेती हैं, इसी वजह से फिल्म मेकर ऐसी फिल्में बना रहे हैं। उन्हें इस बात से बिल्कुल फर्क नहीं पड़ता कि देश के एक तबके की छवि खराब हो जाएगी। ऐसी फिल्में समाज को बस दो भागों में बांटने का काम करती हैं।

फिल्म 72 हूरों की असल कहानी जानने के लिए दैनिक भास्कर ने फिल्म के डायरेक्टर-राइटर संजय पूरन सिंह चौहान और प्रोड्यूसर अशोक पंडित से बात की।

कहानी के बारे में संजय ने बताया कि आतंकवाद पर कई फिल्में बन चुकी हैं, लेकिन उनकी ये फिल्म बाकियों से काफी अलग है। फिल्म के जरिए उन्होंने दुनिया के सामने ये सच्चाई लाने की कोशिश की है कि कैसे लोगों को इतना उकसा दिया जाता है कि वो अपने शरीर में बम बांध कर आत्मघाती बन जाते हैं। आतंकवाद के पीछे असल मानसिकता क्या है, इसे भी फिल्म में दिखाया गया है।

उन्होंने ये भी बताया कि जो इल्जाम उन पर लग रहे हैं कि फिल्म में किसी विशेष धर्म को टारगेट किया गया है, वो बिल्कुल गलत है। हालांकि, जो लोग इस्लामिक फिलासफी के जरिए आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं, उन्हें ये फिल्म पसंद नहीं आएगी।

रिलीज के पहले भी फिल्म को लेकर काफी विवाद हो रहा है। रिपोर्ट्स का दावा है कि रिलीज के बाद भी विवाद बढ़ सकते हैं। इस पर संजय ने कहा कि आतंकवाद के साथ किसी की सहानुभूति नहीं होती, तो रिलीज के बाद जब लोग फिल्म देखेंगे तो शायद इस पर किसी को कोई आपत्ति ना हो।

वहीं, जब इस बारे में प्रोड्यूसर अशोक पंडित से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि अगर इस फिल्म से किसी को कोई परेशान होगी तो वो बहस करने के लिए तैयार हैं। कानून के दायरे में रहकर वो विरोधियों को समझाने की कोशिश करेंगे। द कश्मीर फाइल्स और द केरला स्टोरी का हवाला देकर उन्होंने कहा कि लाखों ने इन फिल्मों को देखा, कोई कुछ कर भी नहीं पाया।

फिल्म से जुड़ी दूसरी अहम बातें-

  • शुरुआत में सेंसर बोर्ड ने फिल्म के ट्रेलर रिलीज को सर्टिफिकेशन नहीं दिया था। हालांकि बाद सेंसर बोर्ड ने इसे पास कर दिया।

  • फिल्म का जब टीजर लॉन्च हुआ था तब अशोक पंडित के ट्विटर अकाउंट पर 27 लाख व्यूज आए थे। टीजर लॉन्च के 4-5 दिन बाद ही उनका अकाउंट सस्पेंड कर दिया गया था।

  • मुंबई के गोरेगांव पुलिस स्टेशन में फिल्म ‘72 हूरें’ के निर्माताओं और निर्देशक के खिलाफ शिकायत दर्ज की गई है। शिकायतकर्ता के मुताबिक इस फिल्म में एक विशेष समुदाय की गलत छवि दिखाई गई है।

  • फिल्म में मौलवी का किरदार पाकिस्तानी एक्टर राशिद नाज साहब ने निभाया था। पिछले साल जनवरी में उनका निधन हो गया है।

  • फिल्म 7 जुलाई को भोजपुरी, कश्मीरी, मराठी समेत 10 भाषाओं में रिलीज होगी। इसमें पवन मल्होत्रा और आमिर बशीर लीड रोल में नजर आएंगे।

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