Trending News

लाल बहादुर शास्त्री’ तिब्बत की निर्वासित सरकार को मान्यता देने वाले थे। दलाई लामा की जीवनी से बड़ा खुलासा

Sunil Shukla

क्या भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ताशकंद से नई दिल्ली लौटने के बाद दलाई लामा के समूह को 'निर्वासित तिब्बत सरकार' की मान्यता देने वाले थे? एक किताब से ये खुलासा हुआ है। वहीं 'Dalai Lama, An Illustrated Biography' में 30 वर्षों तक दलाई लामा के प्राइवेट सेकेट्री रहे तेंजिन गेयचे तेथोंग ने लिखा है कि लाल बहादुर शास्त्री के ताशकंद से लौटने के बाद बड़ा फैसला होने वाला था।

'Organiser' की एक एक्सक्लूसिव रिपोर्ट में बताया गया है कि पुस्तक के अनुसार, नई दिल्ली में दलाई लामा के प्रतिनिधि WD शाकाब्पा ने उन्हें लिखा था कि भारत सरकार ने तिब्बत की निर्वासित सरकार को मान्यता देने के लिए योजना तैयार कर ली है और प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के ताशकंद से लौटने के बाद इस पर घोषणा होगी। बता दें कि दलाई लामा खुद को लाल बहादुर शास्त्री का बड़ा प्रशंसक मानते हैं। उनकी शास्त्री के साथ मुलाकात भी हुई थी।

जवाहर लाल नेहरू के समय कैसे 'हिंदी-चीनी भाई-भाई' का नारा दिया गया था और चीन ने पीठ में छुरा घोंपा था, ये सभी को याद है। तिब्बत पर संयुक्त राष्ट्र में हुई वोटिंग के दौरान भी भारत ने तब चीन का ही पक्ष लिया था। तेंजिन गेयचे तेथोंग (Tenzin Geyche Tethong) द्वारा दलाई लामा की जीवनी के रूप में लिखी गई पुस्तक 'His Holiness the Fourteenth Dalai Lama – I am a son of India' में भी कुछ इसी तरह का दावा किया गया था।

इस पुस्तक में लिखा है कि तिब्बतियों को उम्मीद थी कि भारत सरकार दलाई लामा की सकरार को 'तिब्बत की निर्वासित सरकार' के रूप में मान्यता देगी, लेकिन जनवरी 1966 में रूस के ताशकंद में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के निधन के साथ ही ये उम्मीद भी नहीं रही। लेखक के अनुसार, इसके अगले कुछ वर्षों तक भारत लगातार इस कोशिश में लगा रहा कि चीन से कोई दुश्मनी न मोल ली जाए।

साथ ही उस समय की भारत सरकार नहीं चाहती थी कि निर्वासन में रह रहे तिब्बती नेता ऐसी किसी भी राजनीतिक गतिविधि में हिस्सा लें, जिससे चीन के नाराज़ होने की आशंका हो। साथ ही भारत सरकार ने दलाई लामा को भी ये कह दिया कि वो चीन के 'कल्चरल रेवोलुशन' (चीन के तत्कालीन प्रशासक माओ जेडोंग द्वारा चलाया जा रहा हिंसक अभियान) के विरुद्ध कुछ न कहें। इसके बाद दलाई लामा ने तब के केंद्रीय विदेश मंत्री स्वर्ण सिंह को पत्र लिखा।

17 सितंबर, 1966 को लिखे गए पत्र में उन्होंने अब तक मिले समर्थन के लिए भारत का आभार तो जताया, लेकिन साथ ही ये भी लिखा कि हमने अब तक ऐसी किसी भी गतिविधि में हिस्सा नहीं लिया है, जिससे सरकार को परेशानी या असुविधा हो। लेकिन, साथ ही उन्होंने पूछा था कि क्या वो अपनी इच्छा के अनुसार बयान भी नहीं दे सकते? उन्होंने याद दिलाया कि किस कदर तिब्बत के लोग भारत व यहाँ के नागरिकों पर निर्भर हैं।

1972 में स्वर्ण सिंह ने बयान दिया कि तिब्बत की संप्रभुता या आधिपत्य के मुद्दे पर चीन ही निर्णय लेगा। विदेश मंत्रालय के अधिकारी दलाई लामा से मिलने धर्मशाला तक आ पहुँचे, ताकि उन्हें 10 मार्च को वार्षिक बयान देने से रोका जाए। दलाई लामा ने कहा कि वो 1959 से हर साल बयान देते आ रहे हैं और अबकी न देने का अर्थ होगा चीन के सामने झुकना। लेकिन, 1977 में जनता पार्टी की सरकार आते सब कुछ बदल गया और इसके कई नेता तिब्बत से सहानुभूति रखते थे।

जुलाई 1977 में दलाई लामा और तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की मुलाकात काफी अच्छी रही। दलाई लामा ने उन्हें बताया कि कैसे तिब्बत व भारत की संस्कृतियाँ एक ही पेड़ की दो शाखाएँ हैं। उस सरकार के पितामह जयप्रकाश नारायण तिब्बत के समर्थक थे। अटल बिहारी वाजपेयी, राज नारायण और जॉर्ज फर्नांडिस जैसे नेता भी चीन के सामने झुकने वालों में न थे। पुस्तक में लिखा है कि केंद्रीय रक्षा मंत्री के रूप में भी जॉर्ज फर्नांडिस तिब्बत के बड़े समर्थक रहे।

लाल बहादुर शास्त्री पर पुस्तक लिख चुके अनुज धर ने इस खुलासे पर टिप्पणी करते हुए कहा कि केवल सोवियत और भारत को ही पता था कि लाल बहादुर शास्त्री की मौत कैसे हुई। उन्होंने कहा कि ये मौत प्राकृतिक नहीं थी, सबूत ऐसा कहते हैं। उन्होंने कहा कि सोवियत की ख़ुफ़िया एजेंसी KGB को शक था कि उन्हें ज़हर दिया गया है, ऐसा उस समय की फाइलों में है। उन्होंने अंदेशा जताया कि शास्त्री की मौत का राज़ नेताजी सुभाष चंद्र बोस तक भी जा सकता है, लेकिन भारत के लोग ही इसे भूल गए।

The mainstream media establishment doesn’t want us to survive, but you can help us continue running the show by making a voluntary contribution. Please pay an amount you are comfortable with; an amount you believe is the fair price for the content you have consumed to date.

happy to Help 9920654232@upi 

Dr.Ashwani Mahajan and the Swadeshi Jagran Manch: A Key Voice in India's Economic Policy

DMF घोटाला: EOW ने कोर्ट में पेश की 6000 पन्नों की चार्जशीट, IAS रानू साहू समेत 9 आरोपी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से हुए पेश

Virat Kohli Celebrates as RCB Ends 17-Year Wait Against CSK in Chennai

Ghibli-Style AI Portraits: How to Create Them with Grok 3 and ChatGPT?

Swati Sachdeva Faces Backlash for Joke About Mothers