बसंत पंचमी के पावन अवसर पर माँ सरस्वती पूजा–२०२३ (वर्ष ५वां) का आयोजन Sec - 35 खारघर में धूमधाम से इस वर्ष भी मनाया जा रहा है।
सवेरे १० बजे पूजा होगी एवं ११ बजे विद्यारंभ संस्कार विधि और शाम ५ बजे से सांस्कृतिक कार्यक्रम होने वाले हैं।
इस सांस्कृतिक कार्यक्रम में सभी वर्ग के बच्चे और बड़े कलाकार अपनी प्रतिभा का जलवा बिखेरेंगे।
कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण होगा बच्चों, युवाओं और उनके माता पिता को IAS... IPS... बनने का प्रेरक मार्गदर्शक भाषण स्वयं guiness world record holder.... सम्पूर्ण भारत के एक मात्र अफसर जिन्हे.... IRON MAN और ULTRAMAN की ख्याति प्राप्त है..... भारत का गौरव IPS officer श्री कृष्ण प्रकाश जी द्वारा।
कार्यक्रम की जानकारी श्रीमती संगीता सिंह ,ऐड सुमित सहाय नवीन खरे ने दी।
Basant Panchami 2023: आज वसंत पंचमी है। पूरे देश में वसंत पंचमी के त्योहार को बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। वसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजन का विशेष महत्व होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर ज्ञान, विद्या, कला, साहित्य और संगीत की देवी मां सरस्वती का जन्म हुआ था। वसंत पंचमी के दिन से ही बसंत ऋतु की शुरुआत हो जाती है। इसके बाद से सर्दियां धीरे-धीरे खत्म होने लगती है। वसंत पंचमी तिथि एक अबूझ मुहूर्त होती है जिसमें किसी भी शुभ कार्य को बिना मुहूर्त के किया जा सकता है। बसंत पंचमी पर विद्यारंभ करने की प्रथा होती है। वसंत पचंमी के दिन मां सरस्वती की विधि-विधान की पूजा और मंत्रों का जाप करना शुभ और फलदायी होता है। आइए जानते हैं वसंत पंचमी पर सरवस्ती पूजा के लिए मुहूर्त, पूजा विधि, शुभ योग समेत महत्वपूर्ण जानकारियां.
वसंत पंचमी पूजा शुभ मुहूर्त 2023
हिंदू पंचांग के अनुसार माघ महीने की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को वसंत पंचमी का त्योहार माना जाता है। इस बार पंचमी तिथि की शुरुआत 25 जनवरी को दोपहर 12 बजकर 34 मिनट से हो रही है। ये तिथि 26 जनवरी को सुबह सुबह 10 बजकर 28 मिनट तक रहेगी। उदया तिथि के अनुसार वसंत पंचमी 26 जनवरी को ही मनाई जाएगी। इस दिन सुबह 07 बजकर 12 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 34 मिनट तक पूजा का शुभ मुहूर्त है।
Basant Panchami 2023: मां सरस्वती का स्वरूप
माता सरस्वती को पीला और सफेद रंग बहुत ही प्रिय होता है। सफेद रंग पवित्रता और पीला रंग सकारात्मकता का प्रतीक होत है। मां सरस्वती हंस और मोर की सवारी करती हैं। मोर और हंस सुंदरता व नृत्य को दर्शाता है। इस कारण से माता सरस्वती को हंसवाहिनी कहा जाता है। मां सरस्वती को नदी के किनारे बैठा हुआ दिखाई देता है। नदी जीवन का अस्तित्व है। देव सरस्वती हमेशा कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। शास्त्रों मे कमल का फूल ज्ञान और पवित्रता को दर्शाता है। इसके अलावा माता के हाथों में वीणा और वेद सुशोभित होती है। वीणा और वेद, विद्या, ज्ञान, संगीत, नृत्य और कला को प्रदर्शित करते हैं।
सरस्वती पूजा की कहानी ब्रह्मा वैवराता पुराण और मत्स्य पुराण से संबंधित हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार ब्रह्मा जी धरती पर विचरण करने निकले जहां उनका ध्यान मनुष्यों और जीव-जंतुओं पर गया जो उन्हें नीरस और शांत दिखाई दिए। ये देखकर ब्रह्मा जी को अपनी रचना में कुछ कमी महसूस हुई और उन्होंने अपने कमंडल से जल निकालकर पृथ्वी पर छिड़क दिया। जिससे 4 भुजाओं वाली एक एक स्त्री प्रकट हुई जिसके एक हाथ में वीणा, एक में माला, एक में पुस्तक और एक हाथ में वर मुद्रा थी। चतुरानन ने उन्हें ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती के नाम से पुकारा। ब्रह्मा जी के कहने पर सरस्वती जी ने वीणा के तार झंकृत किए, जिससे सभी प्राणी बोलने लगे, नदियां बहने लगीं, हवा ने भी संगीत पैदा किया। कहा जाता है तभी से बुद्धि व संगीत की देवी के रुप में मां सरस्वती की पूजा की जाने लगी।
बसंत पंचमी की दूसरी कथा: एक बार देवी सरस्वती ने भगवान श्रीकृष्ण को देखा और वे उन पर मोहित हो गई थी। वह उन्हें पति के रूप में पाना चाहती थी, लेकिन भगवान कृष्ण ने उन्हें बताया कि वे केवल राधारानी के प्रति समर्पित हैं। लेकिन मां सरस्वती को मनाने के लिए भगवान कृष्ण ने उन्हें वरदान दिया कि आज से माघ के शुक्ल पक्ष की पंचमी को समस्त विश्व तुम्हारी विद्या व ज्ञान की देवी के रुप में पूजा करेगा। कहते हैं उसी समय भगवान श्री कृष्ण ने सबसे पहले देवी सरस्वती की पूजा की तब से ही बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा लोग करते आ रहे हैं।
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