जब ब्रिटिश सर्जन हेनरी मार्श एक सर्जरी करने के बाद अपने मरीज़ के बिस्तर के बगल में बैठे तो वो अपनी ही गलती से एक बुरी खबर के स्रोत बनने जा रहे थे.
मरीज़ की बाईं बांह की एक नस फंसी हुई थी. इसका ऑपरेशन होना था. लेकिन उनकी गर्दन की बीच की लाइन में छेद करने के बाद मार्श ने उनकी रीढ़ की गलत दिशा की नस निकाल डाली.
मेडिकल दुनिया में इस तरह की गलत दिशा में सर्जरी के तमाम उदाहरण हैं. गलत आंख में इंजेक्शन लग जाता है. गलत ब्रेस्ट की बायोप्सी हो जाती है. इस तरह की गंभीर और रोकी जा सकने वाली घटनाएं एक चीज़ बताती हैं.
एक अध्ययन के मुताबिक़ कुछ लोगों के लिए बाएं-दाएं का अंतर करना ऊपर-नीचे में अंतर करने जैसा ही है लेकिन लगभग छह में से एक शख्स के लिए इसमें अंतर करना मुश्किल होता है.
लेकिन जो लोग मानते हैं उनके साथ ऐसी कोई समस्या नहीं है उन्हें भी किसी आवाज़ से ध्यान बंटने या किसी अवांछित सवाल का जवाब देते वक्त सही फैसला करना मुश्किल होता है.
नीदरलैंड्स में लिडन यूनिवर्सिटी में न्यूरोसाइकॉलोजी की प्रोफेसर इनिक वन डार हैम कहती हैं, ''ऊपर-नीचे या सामने-पीछे बताने में लोगों को दिक्कत नहीं आती लेकिन दाएं-बाएं में अंतर करना अलग चीज़ है. ''
वो कहती हैं, ''ऐसा समरूपता यानी सिमिट्री के कारण होता है क्योंकि जब आप मुड़ते हैं तो ये दूसरी ओर से ऐसा होता लगता है. और यही चीज़ भ्रम पैदा करती है.
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दाएं-बाएं में अंतर करना वास्तव में काफी जटिल प्रक्रिया है. इसमें याददाश्त, दृश्य, जगह की प्रोसेसिंग और मेंटल रोटेशन की प्रक्रिया शामिल होती है.
वास्तव में रिसर्चर इस बात की तह में जाने की कोशिश कर रहे हैं कि जब दाएं-बाएं में अंतर कर रहे होते हैं तो हमारे दिमाग में क्या चल रहा होता है. और ये भी कि कुछ लोगों के लिए ये दूसरों की तुलना में आसान क्यों है.
वान डार हैम और उनके सहयोगियों ने 2020 में की गई एक रिसर्च में पाया था कि लगभग 15 फीसदी लोगों ने कहा था कि जब बाएं-दाएं में अंतर करना हो तो वे खुद को पूरी तरह सक्षम नहीं पाते हैं. अध्ययन में हिस्सा लेने वाले 400 लोगों में से लगभग आधे लोगों ने हैंड रिलेटेड स्ट्रेटजी का इस्तेमाल किया. यानी कौन सा हाथ बायां है और कौन नहीं.
कहने का मतलब ये कि लिखने वाले हाथ के संदर्भ में किसी का शरीर कितना समरूप है (यानी इसमें कितनी सिमिट्री है) उसके लिए बायां-दायां बताना उतना ही आसान होगा.
रिसर्चर ने इस अध्ययन के लिए बर्गेन की 'राइट-लेफ्ट डिस्क्रिमिनेशन टेस्ट' का इस्तेमाल किया ताकि ये बताया जा सके कि ये स्ट्रेटजी कैसे काम करती है.
इसमें हिस्सा लेने वाले भागीदारों ने दो तरह के लोगों की तस्वीरों की मदद ली. एक तरह की तस्वीरों में लोग सीधे उन्हें देख रहे थे और दूसरी में उनसे दूर देख रहे थे. उनकी बाहें अलग-अलग पोजीशन में थीं. उन्हें अपने हाइलाइट किए हुए हाथों को बाएं या दाएं के तौर पर बताना था.
वान डार कहती हैं, ''ये काफी आसान लग सकता है कि लेकिन अगर जल्दी-जल्दी सौ बार ऐसा करने को कहा जाए तो फ्रस्ट्रेशन हो सकता है.''
पहले प्रयोग में प्रतिभागी अपने सामने हाथ को मेज़ पर रख कर बैठे. वान डार कहती हैं, ''अगर आप सिर के पीछे देख रहे होते हैं तो हाथ आपके शरीर के ज्यादा नज़दीक आता है और ऐसे स्थिति में लोगों ने ज्यादा तेजी से बताया कि बायां कौन है या दायां कौन. और ये ज्यादा सटीक था.''
इसी तरह जो लोग बिल्कुल प्रतिभागियों के आमने-सामने थे और वे बाएं हाथ से दाएं हाथ को छू रहे थे और दाएं हाथ बाएं से. यानी उनके हाथ क्रॉस थे. यानी उनके हाथ प्रतिभागियों के हाथ के पोजीशन से मेल खा रहे थे. यानी उनका बायां हाथ प्रतिभागियों के बाएं हाथ की ओर था. ऐसे में प्रतिभागियों ने दाएं-बाएं के अंतर को ज्यादा अच्छी तरह से बताया.''
वान डार कहती हैं, ''इसका मतलब ये है कि बायां-दायां अंतर करने के दौरान शरीर इस प्रक्रिया को शामिल कर लेता है. अगला सवाल ये था कि क्या प्रतिभागी उस समय अपने शरीर से दिए जा रहे इशारों का इस्तेमाल कर रहे थे. या फिर वो अपने शरीर में पहले से जमा हो चुके अंदाज़े की प्रक्रिया का सहारा ले रहे थे."
इसका जवाब जानने के लिए रिसर्चरों ने अपना प्रयोग दोहराया. लेकिन इस बार चार स्थितियां रखी गईं. प्रतिभागी टेबल पर अपने हाथ क्रॉस करके बैठे थे या फिर इसके बगैर. इस प्रयोग के दौरान वे अपना हाथ दिखा रहे थे या फिर इसे काले कपड़ों से बांध रखा था.
लेकिन रिसर्चरों ने पाया कि इनमें से किसी भी बदलाव ने इस टेस्ट परफॉरमेंस पर असर नहीं डाला. कहने का मतलब ये कि प्रतिभागियों को बाएं-दाएं में अंतर करने के लिए अपने हाथों को देखने के लिए अपने शरीर के इस्तेमाल की ज़रूरत नहीं थी.
वान डार ने कहा, ''हम इस गुत्थी को पूरी तरह सुलझा नहीं पाए हैं लेकिन हम ये पता करने में कामयाब रहे कि हमारा शरीर ही बायां-दायां पहचानने में अहम भूमिका अदा करता है. और हम इस प्रक्रिया में अपने शरीर के प्रतिनिधि की मदद लेते हैं. ''
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