भारत-अमेरिका डिफेंस डील से चीन-पाक क्यों परेशान? क्या दुश्मनों के ताबूत में कील साबित होगी ये Deal?

जेट इंजन की डील भारत की सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) और अमेरिका की GE एयरोस्पेस के बीच हुई है।
Why are China and Pakistan upset with India-US defense deal? Will this deal prove to be the nail in the coffin of the enemies?
Why are China and Pakistan upset with India-US defense deal? Will this deal prove to be the nail in the coffin of the enemies?09/09/2023

जी-20 शिखर सम्मेलन में शामिल होने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन शुक्रवार शाम 7 बजे भारत पहुंचे। उनका प्लेन एयरफोर्स वन पालम एयरपोर्ट पहुंचा। पूरे लाव-लश्कर के साथ आए जो बाइडेन हिंदुस्तान के लिए एक खास तोहफा लेकर आए। जी हां, लंबे वक्त से जो डिफेंस डील भारत और अमेरिका के बीच अटकी हुई थी, अब उसे हरी झंडी मिल चुकी है और इस पर दोनों देशों के बीच शुक्रवार को बात भी हुई।

भारत और अमेरिका के बीच एयरक्राफ्ट के लिए जेट इंजन GE-414 की डील अब सील हो गई है, जिससे इंडियन एयरफोर्स की हवाई ताकत में अब पहले से ज्यादा इजाफा होगा। यही वजह है कि पड़ोसी मुल्क चीन-पाकिस्तान की टेंशन बढ़ गई है। ऐसा क्यों है, ये भी आपको बताएंगे। लेकिन पहले बात जेट इंजन डील और जेट इंजन की खासियत की करेंगे।

क्या है फाइटर जेट इंजन डील

इसी साल जून में प्रधानमंत्री मोदी के अमेरिकी दौरे के दौरान ही भारत और अमेरिका के बीच फाइटर जेट इंजन को लेकर डील हुई थी। भारत के लिए ये डील बेहद अहम है क्योंकि इससे भारत की हवाई सैन्य ताकत में इजाफा होगा। अमेरिका इस डील के तहत भारत को फाइटर जेट इंजन की तकनीक को ट्रांसफर करेगा।

जेट इंजन की डील भारत की सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) और अमेरिका की GE एयरोस्पेस के बीच हुई है। समझौते के तहत GE एयरोस्पेस F414 फाइटर जेट इंजन के भारत में निर्माण के लिए अपनी 80 प्रतिशत तकनीक भारत को ट्रांसफर करेगा> इसका सीधा मतलब ये हुआ कि अब लड़ाकू विमानों के इंजन भारत में ही बनेंगे।

हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के चीफ का मानना है कि भारत और अमेरिका के बीच हुई ये डिफेंस डील गेम चेंजर होगी, क्योंकि आने वाले वक्त में जब लड़ाकू विमानों के इंजन भारत में बनेंगे, तो सैन्य लड़ाकू विमानों को मजबूती मिलेगी। जानकारों के मुताबिक, GE एयरस्पेस के जेट इंजन की परफॉर्मेंस काफी अच्छी रही है और इस इंजन को विश्वसनियता के लिए जाना जाता है।

30 सालों से GE-414 का यूज कर रही अमेरिकन नेवी

GE-414 एक टर्बोफैन इंजन, जनरल इलेक्ट्रिक के मिलिट्री एयरक्राफ्ट इंजन का हिस्सा है और अमेरिकन नेवी बीते 30 सालों से ज्यादा वक्त से इसका इस्तेमाल कर रही हैं। जनरल इलेक्ट्रिक एयरोस्पेस की वेबसाइट पर दिए ब्योरे के मुताबिक कंपनी अब तक 1,600 इंजन डिलीवर कर चुकी है, जो अलग-अलग तरह के मिशन पर करीब 5 मिलियन यानी 50 लाख घंटे की उड़ान पूरी कर चुके हैं।

GE-414 जेट इंजन का निर्माण करने वाले दुनिया के चार ही देश हैं, जिनमें अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस का नाम शामिल है। हालांकि, इस इंजन का इस्तेमाल दुनिया के 8 देश करते हैं, लेकिन तकनीक ट्रांसफर होने के साथ अब भारत में भी जेट इंजन का निर्माण होगा और एयरक्रॉफ्ट में GE-414 इंजन के इस्तेमाल से इंडियन एयरफोर्स की हवाई ताकत में इजाफा भी होगा।

भारत के लिए डील क्यों इतनी अहम?

भारत के लिहाज से अमेरिका के साथ जेट इंजन की डील क्यों अहम है? इसकी वजह ये कि अभी दुनिया के चुनिंदा देशों के पास ही लड़ाकू विमानों के लिए इस तरह के इंजन बनाने की टेक्नोलॉजी है। इसमें अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस शामिल हैं। भारत ने क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन जैसी टेक्नोलॉजी में आत्मनिर्भरता तो हासिल कर ली है, लेकिन इस लिस्ट से बाहर है। जिन देशों के पास ये टेक्नोलॉजी है, वे इसे दूसरे देशों से साझा करने से इनकार करते रहे हैं। ऐसे में भारत और अमेरिका के बीच GE-414 की डील न सिर्फ सामरिक नजरिये से महत्वपूर्ण है, बल्कि ऐतिहासिक भी है।

दरअसल, भारत में एमके2 लड़ाकू विमान को बनाने का काम चल रहा है। ये एक हल्का लड़ाकू विमान है। डील का मकसद इस लड़ाकू विनाम में जेट इंजन लगाकर क्षमता को बढ़ाना है।

क्यों खास GE-414 इंजन?

बता दें कि GE-414 सबसे एडवांस टेक्नोलॉजी और फीचर्स से लैस है। इसके परफॉर्मेंस को डिजिटली कंट्रोल किया जा सकता है। इसमें खास तरह का कूलिंग मैटेरियल इस्तेमाल हुआ है। इंजन की परफॉर्मेंस और लाइफ कई गुना बढ़ जाती है।

किसी भी लड़ाकू विमान की ताकत, उसकी मारक क्षमता और उसमें हथियारों की तकनीक होती है, लेकिन सबसे जरूरी लड़ाकू विमान के इंजन का ताकतवर होना होता है। यही वजह है कि भारत ने इस दिशा में बड़ा कदम बढ़ा दिया है। जाहिर है, अगर स्वदेशी जेट इंजन बनेंगे, तो इससे ना सिर्फ लागत कम होगी, बल्कि किसी तरह की परेशानी होने पर उनकी रिपेयरिंग भी भारत में ही संभव होगी।

भारत-अमेरिकी ये डील दुनिया को संदेश

ये भारत और अमेरिका के मजबूत होते रिश्तों का दुनिया को संदेश है। वैसे भी जो बाइडेन भारत आने वाले अमेरिका के 8वें राष्ट्रपति हैं। खास बात ये कि भारत की आजादी के शुरुआती 50 साल में सिर्फ 3 अमेरिकी राष्ट्रपति भारत के दौरे पर आए थे। वहीं, बीते 23 सालों में ये किसी अमेरिकी राष्ट्रपति का छठा दौरा है। भारत और अमेरिका के बीच वक्त के साथ रिश्तों में बदलाव आया है, लेकिन बीते कुछ दशकों में रिश्ते पहले से कहीं ज्यादा मजबूत हुए हैं।

भारत-अमेरिका के कैसे बदले रिश्ते ?

साल 1959 में ड्वाइट आइजनहावर अमेरिका के राष्ट्रपति थे, तब चीन के खिलाफ भारत और अमेरिका साथ आए थे। इसके बाद साल 1969 में जब रिचर्ड निक्सन राष्ट्रपति बने, तब 1971 की जंग में अमेरिका ने पाकिस्तान का साथ दिया। लेकिन साल 1978 में जिमी कार्टर के राष्ट्रपति रहते हुए न्यूक्लियर प्रॉलिफरेशन ट्रीटी पर सहमति नहीं बनी थी।

लेकिन 2000 के दशक में हालात बदलने लगे। 1999 के कारगिल जंग में अमेरिका ने भारत का साथ दिया। वहीं साल 2006 जॉर्ज बुश के राष्ट्रपति रहते हुए भारत-अमेरिका में सिविल न्यूक्लियर एग्रीमेंट हुआ। 2010 राष्ट्रपति रहते हुए बराक ओबामा ने UNSC में भारत की मेंबरशिप को समर्थन दिया।

साल 2015 में ही बराक ओबामा पहली बार गणतंत्र दिवस पर मेहमान बने। वहीं साल 2020 में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप चीन पर फिर आए साथ, 3 अरब डॉलर की डिफेंस डील हुई। भारत और अमेरिका के बीच डिफेंस डील से सबसे ज्यादा कोई मुल्क परेशान है, तो वो पाकिस्तान है।

पड़ोसी पाकिस्तान को लगता है कि भारत की बढ़ती सैन्य शक्ति उसकी मुश्किलें बढ़ा देगी, जबकि भारत अपनी जरूरतों और चुनौतियों को देखते हुए सैन्य क्षमताओं में इजाफा कर रहा है।

पाकिस्तान के साथ चीन की भी बढ़ी टेंशन

उधर, पाकिस्तान के साथ साथ चीन की चिंता भी बढ़ गई है। क्योंकि, बीते कुछ वक्त में भारत ने अमेरिका के साथ सिर्फ जेट इंजन डील ही नहीं की है, बल्कि भारत ने अमेरिका के साथ एमक्यू-9बी ड्रोन को लेकर भी समझौता किया है, जिसके बाद भारत के पास दुनिया का सबसे खतरनाक ड्रोन होगा। इस ड्रोन के आने से भारत जमीनी सीमा के साथ ही समुद्र में भी चीन पर निगरानी रख सकेगा। ये डील भी चीन की आंखों में चुभ रही है।

प्रीडेटर ड्रोन के आने के बाद से भारत और चीन के बीच बने सैन्य अंसतुलन में काफी हद तक खत्म होगा। हवा से जमीन पर मार करने वाली मिसाइलों से लैस और निशाना लगाने में बेहद सटीक ये ड्रोन गेम चेंजर साबित होगा और चीन के उस सशस्त्र ड्रोन का मुकाबला करेगा जो उसने पाकिस्तान को दिया है। चीन ये बात बर्दाश्त नहीं कर पा रहा है, लेकिन भारत निरंतर अपनी सैन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए आगे बढ़ रहा है और हिंदुस्तान का दम दुनिया देख रही है।

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