PM मोदी के विरोध में पोस्‍टर लगाने पर क्‍यों दर्ज हुईं 138 FIR, जानिए- क्‍या कहता है कानून

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोध में देश की राजधानी में लगे पोस्‍टरों पर दिल्‍ली पुलिस ने इतनी बड़ी कार्रवाई क्‍यों की? दिल्ली पुलिस ने इस मामले में 138 प्राथमिकी दर्ज की हैं और 6 लोगों को गिरफ्तार किया है.
Why 138 FIRs were registered for putting up posters against PM Modi, know what the law says
Why 138 FIRs were registered for putting up posters against PM Modi, know what the law says22/03/2023

किसी राजनीतिक पार्टी का दूसरी पार्टी के विरोध में पोस्‍टर लगाना आम बात है. कांग्रेस, भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच पोस्‍टर वार चलता रहा है. फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोध में देश की राजधानी में लगे पोस्‍टरों पर दिल्‍ली पुलिस ने इतनी बड़ी कार्रवाई क्‍यों की?  दिल्ली पुलिस ने राष्ट्रीय राजधानी में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ पोस्टर लगाए जाने के मामले में 138 प्राथमिकी दर्ज की हैं और 6 लोगों को गिरफ्तार किया है. दिल्ली के कई हिस्सों में दीवारों और खंभों पर ऐसे पोस्टर चिपके पाए गए थे जिन पर“मोदी हटाओ, देश बचाओ” लिखा था. इन पोस्‍टरों पर मुद्रक (प्रिंटर) का नाम नहीं लिखा गया था. पुलिस ने दिल्‍ली के विभिन्‍न क्षेत्रों में चिपकाए गए लगभग 2000 पोस्‍टरों को हटाया है. 

विशेष पुलिस आयुक्त (कानून व्यवस्था) दीपेंद्र पाठक ने पुष्टि की कि पुलिस ने प्रधानमंत्री के खिलाफ पोस्टर चिपकाने के मामले में 100 से ज्‍यादा प्राथमिकी दर्ज की हैं. ये कार्रवाई प्रिंटिंग प्रेस अधिनियम और संपत्ति विरूपण अधिनियम के तहत की गई हैं. पुलिस के मुताबिक, पोस्टरों में प्रिंटिंग प्रेस का नाम नहीं लिखा था, इसलिए कारवाई बड़े पैमाने पर हो रही है. दरअसल, अगर कोई पोस्‍टर सार्वजनिक स्‍थान पर लगाया जाता है, तो उस पर मुद्रक का नाम छापा जान अनिवार्य है. अगर ऐसा नहीं होता है, तो ये कानून का उल्‍लंघन माना जाता है.  

दिल्‍ली के पोस्‍टर वार में बीजेपी का AAP पर तंज
इस बीच पोस्टर विवाद पर दिल्ली बीजेपी प्रवक्ता हरीश खुराना का कहना है कि कानून के अनुसार प्रिंटर के नाम के साथ पोस्टर लगाने होते हैं. आम आदमी पार्टी ने पोस्टर लगाने में कानून का पालन नहीं किया. आप में हिम्मत नहीं है कि वे कहे उसी ने पोस्टर लगाएं हैं. 'एक तो चोरी ऊपर से सीनाजोरी', कुछ यही आलम आम आदमी पार्टी का है. आप पोस्टर लगवाते हो बिना नाम के, जब एफआईआर होती है, तो चिल्लाना शुरू कर देते हो कि देश के अंदर लोकतंत्र नहीं है. कानून तो आप मानते नहीं, इसलिए पोस्टर लगवा दिए. हिम्मत है, तो नाम डालिए. कानून अपना काम कर रहा है. इसके बीच पॉलिटिक्स करने की कोशिश मत कीजिए

क्‍या है प्रिंटिंग प्रेस अधिनियम और संपत्ति विरूपण अधिनियम
प्रिंटिंग प्रेस अधिनियम और संपत्ति विरूपण अधिनियम की धाराएं के तहत दर्ज की गईं. प्रिंटिंग प्रेस अधिनियम भारत में मुद्रित होने वाले प्रिंटिंग-प्रेस और समाचार पत्रों के विनियमन के लिए और ऐसी पुस्तकों और समाचार पत्रों के पंजीकरण के लिए एक अधिनियम है. इसमें मुद्रित होने वाली चीजों के बारे में कानून की विभिन्‍न धाराओं का जिक्र है. इसके तक तहत अगर कोई पोस्‍टर प्रिंट किया जाता है, तो उस पर प्रिंटर का नाम लिखा जाना आवश्‍यक होता है. अगर ऐसा नहीं किया जाता है, तो ये कानून का उल्‍लंघन माना जाता है. पीएम मोदी के विरोध में छापे और चिपकाए गए पोस्‍टरों में इसी कानून का उल्‍लंघन किया गया है. वहीं, संपत्ति विरूपण अधिनियम सार्वजनिक संपत्तियों के संरक्षण देने का काम करता है. इसके तहत सार्वजनिक संपत्ति को किसी भी रूप में विरूपण या नुकसान पहुंचाने पर सजा और जुर्माने का प्रावधान है. ये सजा पांच साल तक हो सकती है. 

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