फिल्म 'दोनों' के प्रमोशन के लिए तीनों गुरुवार को जयपुर पहुंचे। इस दौरान राजवीर देओल ने बताया- जब पहली गदर रिलीज हुई थी, तब मेरी उम्र छह साल की थी। मुझे याद है, जब फिल्म देख रहा था, तो उसमें इतना वायलेंस (मारपीट) था कि मैं डर गया था। चंदन थिएटर में फिल्म का ट्रायल चल रहा था। इतना वायलेंस था कि रिलीज पर भी नहीं गया। आगे पढ़िए तीनों की भास्कर से खास बातचीत...
सवाल: पहली बार बड़े पर्दे पर दिखेंगे, किस तरह का एक्पीरियंस रहा अब तक का?
राजवीर : पहली फिल्म का एक खास अनुभव रहा है। शूटिंग से लेकर रिलीज तक अलग तरह का एक्साइटमेंट है। इसमें सबसे अहम जो सीखने को मिला वह पेशेंस है। सीन के शूट होने के इंतजार से फिल्म के रिलीज होने के इंतजार को लेकर जो पेशेंस रखना सीखा है। वह अहम है।
पलोमा: मैं बहुत एक्साइटेड हूं, मेरे सपनों के पूरे होने जैसा है। हम कब से इस पल का इंतजार कर रहे थे। कोविड आने से हम थोड़ा लेट जरूर हुए, लेकिन यह जर्नी हमारे लिए बहुत खास रही है।
सवाल: लेखन से लेकर निर्देशन से कैसे जुड़े, किस तरह इसका आइडिया आया?
अवनीश: 2018 में पहली बार यह सब्जेक्ट मुझे मिला था। क्लोजर के रूप में यह कहानी कहनी थी। वहीं से स्क्रिप्ट लिखने का काम शुरू किया। एक साल इसमें लग गया। इस दौरान कोविड का दौर भी आ गया। एक साल प्रोजेक्ट रुक गया। फिर कोविड के बाद राजवीर प्रोजेक्ट से जुड़ गए। पलोमा की एंट्री हुई। यहां से सफर शुरू होता चला गया। यह एक बेसिक कहानी पर बनी फिल्म है। एक लड़का अपनी बेस्ट फ्रेंड की शादी अटेंड करने जाता है। वह अपनी दोस्त से प्यार करता है। 10 साल से करते आ रहा है, लेकिन वह शादी तोड़ने के लिए नहीं जाता है। वह मूव ऑन होने के लिए जाता है। क्लोजर ढूंढ़ने के लिए। यही बात इस कहानी की नई है। एकतरफा प्यार पर बहुत सारी फिल्में हमने देखी हुई हैं। ऐसी कहानी आज तक हिन्दी सिनेमा में नहीं आई है। अलग तरह की कहानी है। शादी का माहौल है, जिसके लिए राजश्री अपनी अलग पहचान रखता है।
सवाल: आपके इस प्रोडक्शन हाउस का नाम से जयपुर से खास कनेक्शन है, जरा बताएं?
अवनीश: हमारा प्रोडक्शन हाउस राजश्री के नाम से पहचान रखता है। यह 15 अगस्त 1947 में स्थापित हुआ था। देश जितना ही पुराना हमारा प्रोडक्शन हाउस है। राजश्री जो नाम है, यह मेरे पिता की बुआजी राजश्री के नाम रखा गया है। परदादा ताराचन्द्रजी बड़जात्या की छोटी बेटी के नाम पर यह शुरू किया गया था। 1947 से कुछ साल पहले ही उनका जन्म हुआ था। तब सभी को लगा था कि घर में बेटी आई है। लक्ष्मी आई है। जब काम शुरू किया गया तो इनके नाम पर किया गया। बुआजी आज भी जयपुर ही रहती हैं। जयपुर में राजश्री का हैड ऑफिस है।
सवाल: हर एक्टर का सपना होता है कि राजश्री की फिल्म में काम करें, आपकी यहां से लॉन्चिंग हो रही है, कैसा लग रहा है?
राजवीर: अपने आप को बहुत खुश किस्मत मानता हूं कि राजश्री जैसे प्रोडक्शन हाउस की फिल्म से बॉलीवुड में डेब्यू कर रहा हूं। सूरज बड़जात्या, अवनीश ने मुझ पर भरोसा जताया, इससे अच्छा कुछ हो नहीं सकता था।
पलोमा: अभी तक सच कहूं तो विश्वास ही नहीं हो रहा है कि राजश्री के बैनर पर लॉन्च हो रही हूं। यह ड्रीम कम ट्रू वाली सिचुवेशन है। सूरज जी और अवनीश ने बहुत मेहनत के बाद इसे तैयार किया है।
सवाल: लोगों को लगता है कि बॉलीवुड की नामचीन फैमिली से जुड़े होने के कारण एंट्री आसान हो गई, आपका कोई स्ट्रगल रहा?
राजवीर: स्ट्रगल की बात की जाए तो यह पर्सनल होता है। कॉन्फिडेंस की कमी और ऑडिशंस में रिजेक्ट होने का डर रहता है। यहां से आप खुद को कैसे बेहतर और चमकदार बनाते है, यह देखने वाला होता है। आसान तो कुछ नहीं होता है।
पलोमा: इस लाइन में प्रिपरेशन और ऑडिशन सबसे अहम हिस्सा है। जैसे कोविड के टाइम पर प्रोजेक्ट लेट होता गया। मैंने इस रोल के लिए कई ऑडिशन दिए। अवनीश ने इस फिल्म को बेहतरीन तरीके से लिखा है। किरदारों को बेहद खूबसूरती से गढ़ते हुए अवनीश ने बेहतरीन काम किया है।
सवाल: राजश्री प्रोडक्शन प्यार और शादियों को अपने ही अंदाज में प्रस्तुत करता है, इस फिल्म में भी इसकी झलक दिखेगी क्या?
अवनीश: मैं यह कहूंगा कि राजश्री प्रोडक्शन की सभी तरह की खासियत इस फिल्म में भी दिखेगी। बस अलग इतना सा है कि इन सभी को देखने का नजरीया बिल्कुल बदला सा है। हमारी फिल्म दोनों शादी की कहानी को बयां करती है। थाईलैंड की शादी को हमने दिखाया है, क्योंकि डेस्टिनेशन वेडिंग्स का चलन है। हम आपके हैं कौन बनी थी तब घरों में शादियां होती थी। बारात पहले ट्रेन से आती थी। आजकल बारात फ्लाइट से आती है। अब तो वेडिंग प्लानर आ गए हैं। पहले तो घरवाले ही शादियां ऑर्गेनाइज करते थे। शादियां भी बदल गई है। यह आज की शादियों की कहानी है। ये लव और रिलेशनशिप पर अलग तरह से कहानी लिखी है।
सवाल: आपने निर्देशन को ही क्यों चुना, एक्टिंग के जरिए लॉन्च भी हो सकते थे?
अवनीश: एक्टिंग करने का तो कभी सूझा ही नहीं। हमेशा से ही मुझे पता था कि फिल्मों के जरिए आप कहानी को कह सकते है। मैं कुछ कहानियां कह पाऊं, ऐसे में डायरेक्शन ही मेरे वाला हिस्सा था। सपना था कि कैमरे के पीछे से हम कहानियां कह सकें। एक फिल्म बना चुका हूं। बस मौका मिलता रहे।
सवाल: सलमान के लिए कुछ लिख रहे हो, उन पर कोई फिल्म बनाना चाहते हैं?
अवनीश: सलमान के बारे में यही कहूंगा कि कोई भी फिल्म उन पर बनेगी, उसमें डायरेक्शन की जिम्मेदारी बहुत बड़ी हो जाती है। उनके फैंस के प्रति के जिम्मेदारी बन जाती है। उनके स्टारडम को लेकर जिम्मेदारी बन जाती है। इसके लिए एक लायक डायरेक्टर की जरूरत होती है। अभी मैं लायक डायरेक्टर बना नहीं हूं। अभी खुद को प्रूव करना है। अभी सपने में भी सलमान को डायरेक्ट करने के बारे में नहीं सोच सकता हूं। जब तक खुद को प्रूव नहीं कर लेता। ऐसी कोई चीज नहीं करूंगा। मेरे पिता के साथ उनका बॉन्ड बेहद खास है। उनके लिए वे ही परफेक्ट डायरेक्टर हैं।
सवाल: गदर रिलीज हुई थी, तब आप कम उम्र के थे, कोई खास याद है?
राजवीर देओल: जब पहली गदर रिलीज हुई थी, तब मेरी उम्र छह साल की थी। मुझे याद है, जब फिल्म देख रहा था, तो उसमें इतना वायलेंस था कि मैं डर गया था। फिल्म का ट्रायल चल रहा था चंदन थिएटर में। इतना वायलेंस था कि रिलीज पर भी नहीं गया। जब थोड़ा समझदार हुआ तब मैंने वह फिल्म देखी।
गदर-2 की सक्सेस पापा डिर्जव करते है। बॉक्सआफि और ऑडियंस ने फिल्म की सक्सेस साबित की है। मैं इस फिलिंग को ज्यादा शेयर नहीं कर पा रहा हूं। ’
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