लाडली बहना योजना और जन आशीर्वाद यात्रा की वजह से बीजेपी आत्मविश्वास से भरी हुई है। वहीं, पार्टी की फायर ब्रांड नेता उमा भारती के तेवर ने असमंजस में डाल दिया है। हाल ही में जन आशीर्वाद यात्रा में शामिल नहीं किए जाने के बाद उन्होंने राजनीति को भगवत प्राप्ति का साधन बताकर संन्यास न लेने का ऐलान कर दिया है। साथ ही पार्टी को स्पष्ट संकेत दिए हैं कि उन्हें 'आउट ऑफ फ्रेम' नहीं रखा जा सकता। साथ ही उन्होंने ऐलान कर दिया है कि मैं अगला चुनाव लड़ूंगी। विभिन्न आत्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियों के चलते अवकाश के बाद वे अपनी बयानों की सक्रियता से पार्टी के माथे पर चिंता की लकीरें खिंचवा देती है।
मध्यप्रदेश सरकार की शराब नीति को लेकर उन्होंने विभिन्न फोरमों पर अपना विरोध जताया। इसके अलावा दुकानों पर भी जाकर पार्टी को बैकफुट पर आने को मजबूर कर दिया था। समय-समय पर दिए जाने वाले विभिन्न अल्टीमेटमों के मद्देनजर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 'भाई -बहन' के पक्के रिश्ते का हवाला देते हुए उनकी कई मांगे मानते हुए, उन्हें संभाला था और उनका ईगो भी संतुष्ट किया था।
वहीं, कई बार की सांसद और केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने 2003 में मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की वापसी का नेतृत्व किया था। उन्हें भी पार्टी ने बिना किसी हिचकिचाहट के मुख्यमंत्री का पद दिया। लेकिन 1994 के हुबली दंगों के चलते जारी गिरफ्तारी वारंट को लेकर उन्होंने तिरंगा यात्रा निकालते हुए मुख्यमंत्री पद से अगस्त 2004 में इस्तीफा दे दिया था। वे इस मामले में बाइज्जत बरी हो गईं, और उन्हें लगा कि पार्टी उन्हें ससम्मान मुख्यमंत्री के पद पर काबिज करा देगी। वहीं, उनके बाद बनाए गए मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर ने अपनी राजनीतिक कुशलता का उपयोग करते हुए पार्टी के कुछ नेताओं की शह पर पद त्यागने से इनकार कर दिया।
उमा भारती की वापसी के चलते प्रदेश बीजेपी में घमासान हो गया। इसे संभालने के लिए बीजेपी के थिंक टैंक प्रमोद महाजन और अरुण जेटली को भोपाल आना पड़ा। उमा भारती की वापसी पर सहमति नहीं होने पर उन्होंने सिपहसालार प्रहलाद पटेल को मुख्यमंत्री बनाने की पेशकश भी की, लेकिन पार्टी हाई कमान की तरफ से भेजे गए जेटली और महाजन के सामने उनकी एक न चली थी। इसके बाद दुःखी मन से बैठक का बहिष्कार करते हुए कुछ दिनों बाद भारतीय जनशक्ति पार्टी का गठन किया था।
इसके पूर्व भी 2004 में लालकृष्ण आडवाणी की कथित आलोचना के चलते उन्हें पार्टी से बर्खास्तगी का सामना करना पड़ा था। हालांकि 2005 में वापसी हो जाने के चलते केंद्रीय संसदीय बोर्ड में भी जगह मिली थी। इन बातों से साफ है कि उमा भारती का व्यक्तिगत और राजनीतिक जीवन संघर्ष और उलट फेर से भरा हुआ है। वह हमेशा सशक्त वापसी करती हैं।
उमा भारती की साहसी छवि और नेतृत्व क्षमता और तर्कपूर्ण प्रतिक्रियाओं का लोहा पार्टी के साथ-साथ उनका विपक्ष भी मानता है। बीजेपी उनके लिए प्रदेश में सम्मानजनक स्थान ढूंढने की कवायद में फिलहाल लाचार नजर आ रही है। हाल ही में उनके भतीजे राहुल सिंह लोधी को मंत्रिमंडल में शामिल कर उन्हें बैलेंस करने की कोशिश की गई है। साथ ही उनके बेहद करीबी और विश्वसनीय साथियों में शामिल प्रहलाद सिंह पटेल भी केंद्र में लगातार मंत्री बने हुए हैं।
वहीं, उनके अनप्रिडिक्टेबल नेचर के चलते पार्टी हमेशा असहज ही रहती हैं। 2011 में उमा भारती ने वापसी के बाद उन्होंने बेहद संयत व्यवहार और राजनीतिक समझदारी का परिचय दिया। उन्हें भी पार्टी ने मध्य प्रदेश से दूर रखते हुए पहले उत्तर प्रदेश के चरखारी से विधायक और उसके बाद झांसी से सांसद बनाकर उनके आध्यात्मिक रुचि के
पार्टी उनकी उम्र से ज्यादा स्वास्थ्य जनित कारणों और शारीरिक क्षमताओं के मुताबिक पद तो निश्चित तौर पर देना चाहती है। इसमें दिक्कत यह है कि उनके कद का पद ढूंढना टेढ़ी खीर नजर आ रही है। पार्टी को मालूम है कि उमा भारती वन मैन शो और आम सहमति से चलने वाली नेताओं में से नहीं हैं। इसलिए आगामी महत्वपूर्ण चुनाव में जिम्मेदारियां देना जोखिम का काम हो सकता है।
फिलहाल सेवानिवृत्ति सी जिंदगी जी रही साध्वी पार्टी और जनता को समय-समय पर यह बताने से नहीं चूकती कि उनमें फिलहाल बड़ी मात्रा में रचनात्मक ऊर्जा बाकी है। इसका पार्टी और देशहित में उपयोग होना चाहिए।
The mainstream media establishment doesn’t want us to survive, but you can help us continue running the show by making a voluntary contribution. Please pay an amount you are comfortable with; an amount you believe is the fair price for the content you have consumed to date.
happy to Help 9920654232@upi