Mahatma Gandhi Death Anniversary: संघ गांधी के आदर्शों को ही आगे बढ़ा रहा है

गांधीजी देश में राष्ट्रीयता एवं हिन्दू-संस्कृति के पोषक थे। वे गौ-माता की रक्षा की खुलकर वकालत की। उनकी नजरों में धर्मांतरण राष्ट्र-विकास का बाधक तत्व था। वे हिन्दी भाषा के उत्थान एवं उन्नयन के लिये सम्पूर्ण जीवन प्रयासरत रहे।
Mahatma Gandhi Death Anniversary
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महात्मा गांधी बीसवीं शताब्दी में दुनिया के सबसे सशक्त, बड़े एवं प्रभावी नेता के रूप में उभरे, वे बापू एवं राष्ट्रपिता के रूप में लोकप्रिय हुए, वे पूरी दुनिया में अहिंसा, शांति, करूणा, सत्य, ईमानदारी एवं साम्प्रदायिक सौहार्द के साथ-साथ हिन्दू-संस्कृति, स्वदेशी, गौ-सेवा, स्वावलम्बन, स्वच्छता के सफल प्रयोक्ता के रूप में याद किये जाते हैं। वे एक रचनात्मक व्यक्तित्व थे जिन्होंने अपने ही मूल्यों के बल पर देश को आजादी दिलाई, नैतिक एवं स्वस्थ मूल्यों को स्थापित किया। उनके द्वारा निरुपित सिद्धान्त आज की दुनिया की चुनौतियों एवं समस्याओं के समाधान करने के सबसे सशक्त माध्यम है। लेकिन वक्त की विडम्बना देखिये कि गांधी को हम बार-बार कटघरे में खड़ा करते हैं और उनकी छवि को संकीर्ण दायरों में बांधने एवं धुंधलाने की कोशिश में कोई कमी नहीं छोड़ते। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज गांधी के आदर्शों को ही आगे बढ़ा रहा है।

गांधीजी देश में राष्ट्रीयता एवं हिन्दू-संस्कृति के पोषक थे। वे गौ-माता की रक्षा की खुलकर वकालत की। उनकी नजरों में धर्मांतरण राष्ट्र-विकास का बाधक तत्व था। वे हिन्दी भाषा के उत्थान एवं उन्नयन के लिये सम्पूर्ण जीवन प्रयासरत रहे। गाँधी ने कहा था कि- गाय बचेगी तो मनुष्य बचेगा। गाय नष्ट होगी तो उसके साथ, हमारी सभ्यता और अहिंसा प्रधान संस्कृति भी नष्ट हो जाएगी। करुणा के क्रंदन को ठोकर मारकर पर्यावरण के साथ खिलवाड़ कर संस्कारहीन पीढ़ी बनाने पर हम आमादा हो गए हैं। महात्मा गाँधी की दुहाई देकर देश चलाने वाले उन्हीं के आदर्शों का खून कर रहे हैं। जिन गाँधीजी की तर्ज पर जगह-जगह आंदोलन होते हैं उनमें आम जनता का, जीवदया, स्व-संस्कृति, स्वदेशी का हिस्सा कहीं नजर नहीं आता है। गाँधीजी ने गौमाता को पूजने का आदर्श प्रस्तुत किया था लेकिन इसके विपरीत उनको पूजने वाली सरकारें गौमाता को कत्लखाने भेजे पर आमादा है। गाय को माँ और कामधेनु मानने वाला भारतवासी इनको क्रूर तरीकों से वाहनों में लादकर कत्लखानों में भेजने का धंधा कर रहा है। इस प्रकार की दानवी मानसिकता में उसकी संवेदना कहीं गुम हो गई है। स्वार्थी मनुष्य न जाने क्या करेगा? जिस गौवंश के पूजन को आदर्श बनाकर भगवान श्रीकृष्ण ने राष्ट्र को एक सूत्र में बाँधने के लिए गौवंश की महत्ता का प्रतिपादन किया। भगवान शिव ने गले में सर्प को धारण कर विषधर प्राणी तक को स्नेह का संदेश दिया और बैल को अपने नजदीक स्थान देकर सम्मान प्रदान किया। उसी गौवंश की दयनीय दशा अहिंसक समाज में नासूर है एवं गांधी के जीवन-दर्शन का हनन है। 

गांधीजी धर्मांतरण के खिलाफ थे। वे गीता, रामायण, रामचरित मानस का गहन अध्ययन किया। को बात उन दिनों की है जब गांधीजी विलायत में थे, उस समय वे बैरिस्टरी के छात्र थे। विलायत में उनका संपर्क ईसाइयों से हुआ, उनके मन पर ईसाई धर्म का व्यापक प्रभाव पड़ा। यहां तक कि वे ईसाई बनने के लिए तत्पर हो गये, पर ईसाई बनने से पहले उन्होंने श्री राजचन्द्र भाई को एक पत्र लिखा, जिनके प्रति उनकी बड़ी श्रद्धा थी। उन्होंने लिखा कि मैं ईसाई धर्म अपनाना चाहता हूं, आपकी क्या राय है? श्री राजचन्द्र भाई ने लिखा कि मेरा कहना इतना ही है कि जिस धर्म में आप पैदा हुए हैं, कम-से-कम धर्म को अच्छी तरह जान लें, उसका अध्ययन कर लें। यदि इसके बावजूद आपको संतोष न हो तो दूसरा धर्म अपना लें। श्री राजचन्द्र भाई  के सुझाव पर गांधीजी ने अपने धर्म के बारे में गहराई से अध्ययन किया, जाना। उन्होंने गीता पढ़ी तो पाया कि सब कुछ इसमें विद्यमान है, सब धर्मों का सार है। जिन बातों के कारण मैं औरों के धर्मों से प्रभावित हुआ था, उन सबकी शिक्षा इसमें मिलती है। घर की चीजों को हम नहीं देखते, बाहर की चीजों को ही देखते हैं, यही हमारी सबसे बड़ी भूल है। हर आदमी को अपनी चीजों को और अपने घर को पहले गहराई से देखना चाहिए। गांधीजी ईसाई धर्म स्वीकार कर लेते तो यह उनकी बड़ी भूल होती, जिससे श्री राजचन्द्र भाई ने उन्हें बचा लिया। इसके पश्चात गांधीजी के जीवन पर हिन्दू धर्म एवं संस्कृति का व्यापक प्रभाव पड़ा। असल में गांधी हिन्दूवादी ही थे, जिन्होंने अपनी अन्तिम सांस हे राम! से ली हो, सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है वे कितने हिन्दू-संस्कृति को मानने वाले थे।

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अंग्रेजों की गुलामी से भारत को आजाद कराने के लिए 1906 में महात्मा गांधी ने स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत की। इसके तहत बापू ने देश की जनता से ब्रिटेन में बने सामान, कपड़े और मसालों का बहिष्कार करने का आह्वान किया। स्वदेशी आंदोलन आजादी तक चला और इसे काफी बल मिला। यह महात्मा गांधी का सबसे सफल आंदोलन था। इसमें वीर सावरकर, लोकमान्य तिलक, लाला लाजपत राय, अरविंद घोष और रविंद्रनाथ टैगोर आदि स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का पूरा सहयोग मिला। बंगाल विभाजन के बाद स्वदेशी आंदोलन के चलते देश के अलग-अलग हिस्सों में अंग्रेजी सरकार के बने सामान का पूरी तरह से बहिष्कार किया गया। बापू ने आंदोलन के जरिए जनता से स्वदेशी चीजे अपनाने की बात कही। आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जिन कार्यक्रमों एवं गतिविधियों पर बल दे रहा है, गांधीजी ने भी उन्हीं को बल दिया था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक भगवा ध्वज के प्रति अविचल निष्ठा रखते हुए उन सभी जीवन मूल्यों के प्रति आस्थावान रहते हैं जिनको गांधी ने अपने जीवन में जिया। 

शाखा पद्धति गांधी के खादी और चरखे की तरह जीवन शैली और विचार परिवर्तन का सामान्यतम नागरिक को स्पर्श करने वाला आंदोलन है। गांधीजी शाखा के अनुशासन से अत्यंत प्रभावित हुए थे। गांधी और उनके अनुयायियों की एक विशिष्ट वेशभूषा थी, जिनसे ही वे पहचान में आ जाते थे। संघ के स्वयंसेवकों की भी एक विशिष्ट वेशभूषा, गणवेश और व्यवहार शैली है जिससे वे सबसे अलग अपनी विशिष्टताओं से पहचान में आ जाते हैं। गौ, स्वदेशी, संयमित आरोग्य वर्धक जीवन शैली, राष्ट्रीय विषयों पर हिमालय सामान दृढ़ता, सभी मतावलम्बियों के साथ भारत भक्ति के मूल अधिस्थान पर मैत्री और सहयोग का भाव, स्वदेशी मूल्यों पर आधारित शिक्षा का विश्व में सबसे बड़ा विद्या भारती उपक्रम, अस्पृश्यता के दंश से आक्रांत अनुसूचित जातियों के मध्य समरसता का अभियान आदि संघ के प्रकल्प गांधी के ही प्रकल्प है। 

स्वदेशी के जरिए गाँधीजी अर्थव्यवस्था में सम्पूर्ण उत्पादन ढांचे को बदल डालने का प्रस्ताव करते हुए एक आत्मनिर्भर एवं स्वावलंबी आर्थिक क्षेत्र को अपना उद्देश्य बनाते हैं जो अपने पड़ोसियों के साथ परस्परावलंबन का जीवन व्यतीत कर सके। स्वावलंबी गाँव आर्थिक विकेंद्रीकरण का ही रूप है जिसका आधार स्थानीयता एवं उस पर आधारित प्रौद्योगिकी संसाधन है। इसका उद्देश्य लोगों की सेवा करना है। इस व्यवस्था में उत्पादन, उपभोग स्थानीय होने के कारण मालिक, श्रमिक और उपभोक्ता तीनों एक ही हो जाते हैं, यही इसकी विशिष्टता है। गांधीजी के लिए सत्य व अहिंसा जीवन का मूलभूत नियम होने के कारण आर्थिक विचार भी इसी उद्देश्य की प्राप्ति के साधन हो जाते हैं। आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वावलम्बी अर्थ-व्यवस्था पर जोर दे रहे हैं, यह गांधी के सिद्धान्तों पर ही आधारित है। महात्मा गांधी ने हस्तशिल्प व कुटीर उद्योग को हमेशा बढ़ावा दिया है। उनके ग्राम स्वराज का सपना था कि गांव के कुटीर, लघु और कृषि उद्योग तेजी से आगे बढ़े। अगर देश का हर नागरिक सोचे कि जो वह स्वदेशी उत्पाद इस्तेमाल कर रहा है, उससे न केवल देश की कंपनी का फायदा होगा, बल्कि देश में ज्यादा से ज्यादा रोजगार उत्पन्न होंगे, तो देश तेजी से आत्मनिर्भर की ओर बढ़ेगा।

कोरोना महामारी ने हमें महसूस करा दिया कि व्यक्तिगत स्वच्छता हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण है। इसलिए आज के संदर्भ में हर किसी को महात्मा गांधी के स्वच्छता संबंधी विचारों को आत्मसात करना चाहिए। उनके जीवन में स्वच्छता इतना महत्वपूर्ण था कि वह इसे राजनीतिक स्वतंत्रता से भी ऊपर मानते थे। वह मानते थे कि स्वच्छ रहकर ही हम खुद को स्वस्थ रख सकते हैं और स्वस्थ राष्ट्र ही तेजी से प्रगति कर सकता है। वह अपने विचारों में ग्रामीण समाज को ऊपर रखते थे और स्वच्छता के मामले में वह कहते थे कि साफ-सफाई से ही भारत के गांवों को आदर्श बनाया जा सकता है। उनका मानना था कि स्वच्छता को अपने आचरण में इस तरह से अपना लेना चाहिए कि वह आदत बन जाए। महात्मा गांधी के स्वच्छ भारत के स्वप्न को पूरा करने के लिए, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 2 अक्टूबर 2014 को स्वच्छ भारत अभियान शुरू किया और इसके सफल कार्यान्वयन हेतु भारत के सभी नागरिकों से इस अभियान से जुड़ने की अपील की।

स्वदेशी, पंचायती राज्य व्यवस्था और स्वच्छता के अलावा महात्मा गांधी के और भी कई ऐसे विचार हैं, जो आज के संदर्भ में प्रासंगिक है। इसमें पर्यावरण एवं सतत विकास, महिलाओं का सम्मान, सत्य और अहिंसा आदि शामिल है। गांधी को आज के समय में समझना  हो तो संघ के स्वयंसेवक के साथ सेवा बस्तियों में जाइए, शाखा में देशभक्ति के गीत गाइए, संघ प्रेरित गौशालाओं में गौ सेवा करिए, विद्या भारती के विद्यालयों में राष्ट्रभक्ति के उपक्रम देखिए, वनवासी कल्याण आश्रम के कार्यकत्र्ताओं के साथ नागालैंड, अरुणाचल, छत्तीसगढ़, राजस्थान के जनजाति क्षेत्रों में नवीन कुशल कुशाग्र वीर हिन्दू जनजातियों के उत्साह को समझाएं, तब गांधी समझ में आ जाएंगे। हिन्दू जीवन मूल्यों के लिए असंख्य लोगों ने अपनी-अपनी समझ  और शक्ति  के बल पर कार्य किया। गांधी उनमें से एक, और हमारे समय के सर्वाधिक लोकप्रिय, वैश्विक स्वीकार्यता वाले महापुरुष थे।

गांधी के निर्वाण दिवस पर उनकी पावन स्मृति के साथ-साथ जरूरी है कि हम उन्हें पुनर्जीवित करें। क्योंकि गांधी का पुनर्जन्म ही समस्याओं के धुंधलकों से हमें बाहर कर सकता है। स्व-पहचान एवं स्व-संस्कृति को जीवंत कर सकता है। इसलिए ही गांधीजी की जरूरत आज पहले से कहीं अधिक है। पुण्यतिथि है। गांधीजी की प्रतिमा के सामने आंख मूंदकर कुछ क्षण खड़े रहकर अपने आपको बड़ा राजनीतिज्ञ बताने वाले यह कहने का साहस करेंगे कि वे गांधीजी के बताए रास्तों पर क्यों नहीं चल रहे हैं? नहीं, वे यह कतई नहीं बतायेंगे। भले ही हमारे ही लोग गांधी को कमतर आंक रहे हो, पर वे ही दुनिया में शांति की स्थापना के माध्यम बनेंगे। क्योंकि वे केवल भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के पितामह ही नहीं थे अपितु उन्होंने विश्व के कई देशों को स्वतंत्रता की राह दिखाई। वे चाहते थे कि भारत केवल एशिया और अफ्रीका का ही नहीं अपितु सारे विश्व की मुक्ति का नेतृत्व करें। उनका कहना था कि ‘एक दिन आयेगा, जब शांति की खोज में विश्व के सभी देश भारत की ओर अपना रूख करेंगे और विश्व को शांति की राह दिखाने के कारण भारत विश्व का प्रकाश बनेगा।’ हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयासों से ऐसा होता हुआ दिख रहा है, न केवल गांधी का पुनर्जन्म हो रहा है, बल्कि समूची दुनिया शांति और सह-अस्तित्व के लिये भारत की ओर आशाभरी निगाहों से निहार रही है।

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