
नई दिल्ली:
दिल्ली के उपमुख्यमंत्री रहे आप नेता मनीष सिसोदिया की जमानत अर्जी पर दिल्ली हाईकोर्ट ने सीबीआई को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. आबकारी नीति मामले में सीबीआई की ओर से दर्ज केस में ज़मानत के लिए मनीष सिसोदिया की अर्जी पर दिल्ली हाईकोर्ट ने सीबीआई को नोटिस जारी किया है.
कोर्ट ने मामले में सिसोदिया की जमानत अर्जी पर सीबीआई से जवाब मांगा है. दिल्ली हाई कोर्ट ने सीबीआई से दो हफ्ते में जवाब मांगा है. दरअसल, मनीष सिसोदिया ने निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती दी है, जिसमें राउज एवेन्यू कोर्ट ने उनकी जमानत अर्जी खारिज कर दी थी. मामले की अगली सुनवाई 20 अप्रैल को होगी.
गौरतलब है कि दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने आबकारी नीति घोटाला मामले में जमानत के लिए बुधवार को दिल्ली उच्च न्यायालय का रुख किया. इस मामले की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा की जा रही है.
यहां की एक निचली अदालत ने 31 मार्च को आप के नेता सिसोदिया की जमानत याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि वह प्रथम दृष्टया इस मामले में आपराधिक साजिश के सूत्रधार थे और उन्होंने दिल्ली सरकार में अपने और अपने सहयोगियों के लिए लगभग 90-100 करोड़ रुपये की अग्रिम रिश्वत के कथित भुगतान से संबंधित आपराधिक साजिश में 'सबसे महत्वपूर्ण एवं प्रमुख भूमिका' निभाई.
सीबीआई ने अब रद्द की जा चुकी दिल्ली आबकारी नीति 2021-22 में कथित भ्रष्टाचार के सिलसिले में कई दौर की पूछताछ के बाद 26 फरवरी को सिसोदिया को गिरफ्तार किया था.
आम आदमी पार्टी (आप) के नेता की जमानत याचिका पर आदेश सुरक्षित रखने वाले विशेष न्यायाधीश एम के नागपाल ने कहा था कि वह इस समय उन्हें रिहा करने के पक्ष में नहीं हैं.
आपराधिक साजिश के पहलू पर बात करते हुए और अब तक की गई जांच पर सीबीआई के अभिवेदन का संदर्भ देते हुए न्यायाधीश ने कहा था कि सिसोदिया ने 'आपराधिक साजिश में सबसे महत्वपूर्ण और बड़ी भूमिका निभाई थी और वह उक्त साजिश के उद्देश्यों की प्राप्ति सुनिश्चित करने के लिए उक्त नीति के निर्माण और कार्यान्वयन में प्रमुखता से शामिल थे. इस प्रकार, अभियोजन पक्ष द्वारा लगाए गए आरोपों और उनके समर्थन में अब तक एकत्र किए गए सबूतों के अनुसार, आवेदक को प्रथम दृष्टया उक्तआपराधिक साजिश का सूत्रधार माना जा सकता है.'
उन्होंने 34 पन्नों के अपने आदेश में कहा था, ‘‘... यह अदालत मामले की जांच के इस स्तर पर आवेदक को जमानत पर रिहा करने की इच्छुक नहीं है, क्योंकि उसकी रिहाई से जारी जांच पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है और इसकी प्रगति भी गंभीर रूप से बाधित होगी. इसलिए, आवेदक की ओर से दायर की गई यह जमानत याचिका खारिज की जाती है.''
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