कर्नाटक सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में महाराष्ट्र के साथ सीमा विवाद से संबंधित केस लड़ने के लिए मुकुल रोहतगी सहित वरिष्ठ वकीलों की टीम के लिए एक दिन में लगभग 60 लाख रुपये का पेशेवर शुल्क तय किया है। कानून विभाग के एक आदेश में कहा गया है कि कर्नाटक सरकार ने सीमा विवाद पर महाराष्ट्र सरकार द्वारा दायर एक मूल मुकदमे (नंबर 4/2004) में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कर्नाटक का प्रतिनिधित्व करने के लिए कानूनी टीम के लिए नियम और शर्तें और पेशेवर शुल्क तय किया है।
भारी भरकम फीस लेकर केस लड़ेंगे मुकुल रोहतगी
18 जनवरी के आदेश के अनुसार, वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी को शीर्ष अदालत में पेश होने के लिए प्रतिदिन 22 लाख रुपये और सम्मेलन और अन्य कार्यों के लिए प्रति दिन 5.5 लाख रुपये का भुगतान किया जाएगा। एक अन्य वकील श्याम दीवान को अदालत में पेश होने के लिए प्रतिदिन छह लाख रुपये, मुकदमे की तैयारी और अन्य कार्यों के लिए प्रतिदिन 1.5 लाख रुपये और बाहरी यात्राओं के लिए प्रतिदिन 10 लाख रुपये का भुगतान किया जाएगा। होटल सुविधाओं और बिजनेस क्लास की हवाई यात्रा का खर्च सरकार वहन करेगी।
पिछले साल के अंत में सीमा विवाद और गहरा गया था
बता दें कि पिछले साल के अंत में सीमा विवाद उस समय और गहरा गया जब दोनों पक्षों के वाहनों को निशाना बनाया जा रहा था, दोनों राज्यों के नेताओं की तरफ से बयानबाजी तेज हो गई थी। इसके अलावा कन्नड़ और मराठी कार्यकर्ताओं को बेलागवी में तनावपूर्ण माहौल के बीच पुलिस द्वारा हिरासत में लिया गया था।भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के बाद सीमा का मुद्दा 1957 का है।
दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद क्या है?
यह सीमा विवाद कर्नाटक के बेलागवी (बेलगाम), उत्तर कन्नड़ा, बीदर और गुलबर्गा जिलों के 814 गांवों से जुड़ा है। इन गांवों में मराठी भाषी परिवार रहते हैं। 1956 के राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत जब राज्यों की सीमा का निर्धारण हुआ तो ये गांव उस वक्त के मैसूर (वर्तमान कर्नाटक) राज्य का हिस्सा बन गए। महाराष्ट्र इन गांवों पर अपना दावा करता है।
यह विवाद कितना पुराना है?
बॉम्बे प्रेसिडेंसी में कर्नाटक के विजयपुरा, बेलागवी, धारवाड़ और उत्तर कन्नड़ा जिले आते थे। 1948 में बेलगाम म्युनिसिपालिटी ने जिले को महाराष्ट्र में शामिल करने की मांग की थी। लेकिन, स्टेट्स रीऑर्गेनाइजेशन एक्ट 1956 के तहत बॉम्बे प्रेसिडेंसी में शामिल रहे बेलगाम और उसकी 10 तालुका को मैसूर स्टेट (1973 में कर्नाटक नाम मिला) में शामिल किया गया। दलील दी गई कि इन जगहों पर 50% से अधिक कन्नड़भाषी थे, पर विरोधी ऐसा नहीं मानते। उनका दावा है कि करीब 7,000 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले इन इलाकों में मराठी भाषी लोगों की बहुलता है ऐसे में ये इलाके महाराष्ट्र का हिस्सा हैं।
अब तक इस विवाद में क्या-क्या हो चुका है?
22 मई, 1966 को सेनापति बापट और उनके साथियों ने मुख्यमंत्री आवास के बाहर भूख हड़ताल की। इसके बाद सीमा विवाद के इस मुद्दे को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सामने लाया गया। इसके बाद इंदिरा सरकार ने अक्टूबर 1966 में विवाद के निपटारे के लिए भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश मेहर चंद महाजन की अध्यक्षता में महाजन आयोग का गठन किया था। इस आयोग को महाराष्ट्र, कर्नाटक और केरल के बीच जारी सीमा विवाद के निपटारे के लिए बनाया गया था। इस आयोग ने कर्नाटक के 264 गांवों को महाराष्ट्र में स्थानांतरित करने का सुझाव दिया था। इसके साथ ही बेलगाम और महाराष्ट्र के 247 गांवों को कर्नाटक में रखने की बात भी कही। महाराष्ट्र ने इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया। 2004 में महाराष्ट्र सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई।
The mainstream media establishment doesn’t want us to survive, but you can help us continue running the show by making a voluntary contribution. Please pay an amount you are comfortable with; an amount you believe is the fair price for the content you have consumed to date.
happy to Help 9920654232@upi