वॉशिंगटन: अमेरिका और भारत के बीच पिछले कई दिनों से एमक्यू-9बी ड्रोन की जो डील अटकी हुई थी, वह अब अपने मुकाम पर पहुंच सकती है। वॉल स्ट्रीट जनरल की एक रिपोर्ट पर अगर यकीन करें तो भारत इस खतरनाक ड्रोन की डील को फाइनल करने की दिशा में एक कदम आगे बढ़ चुका है। यह ड्रोन हिमालय के क्षेत्र में लगी चीन और पाकिस्तान की सीमा पर भारत की सुरक्षा को और मजबूत कर सकेगा। साथ ही हिंद महासागर में चीन के खिलाफ सुरक्षा घेरे को भी मजबूत करेगा। कई रक्षा विशेषज्ञ इस ड्रोन की डील को चीन के खिलाफ भारत के और आक्रामक रवैये को बताने के लिए काफी है।
सबसे एडवांस्ड ड्रोन
एमक्यू-9बी ड्रोन को दुनिया का सबसे एडवांस्ड ड्रोन माना जाता है। यह ड्रोन पनडुब्बी-रोधी युद्ध क्षमता से लैस है। इसके साथ ही साथ जमीन पर हमल करने के अलावा एंटी-शिप मिसाइल को भी निशाना बना सकता है। इसके आने से भारतीय नौसेना की ताकत में कई गुना इजाफा हो जाएगा। हिंद महासागर में उसकी सर्विलांस क्षमता बढ़ेगी। यह वह क्षेत्र है जहां पर इस समय चीन अपनी नौसेना की मौजूदगी को बढ़ाने में लगा हुआ है। भारत सरकार खरीद को लेकर जल्द ही कोई फैसला ले सकती है। अगर यह डील फाइनल हो जाती है तो भारत और अमेरिका के रिश्तों में यह एक मील का पत्थर होगी। सूत्रों की मानें तो अगले कुछ हफ्तों में इस डील को मंजूरी मिल सकती है।
भारत को मिलेगा लेटेस्ट वर्जन
अगर भारत खरीद के लिए डील साइन करता है तो फिर उसे अमेरिका की मंजूरी का इंतजार करना होगा। इसके बाद दोनों देशों की सरकारों के बीच एक समझौता साइन होगा। हालांकि अभी इसमें कुछ महीनों का समय लग सकता है। इस तरह का समझौता भारत को दुनिया का पहला ऐसा देश बना देगा जो अमेरिका का संधि सहयोगी न होते हुए भी इस ड्रोन का लेटेस्ट वर्जन खरीदेगा। अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन के प्रवक्ता लेफ्टिनेंट कर्नल मार्टी मेइनेर्स की मानें तो रक्षा विभाग आने संभावित विदेशी मिलिट्री सौदों पर टिप्पणी नहीं करता है।
फिलहाल भारत की सेनाओं के पास दो एमक्यू-9बी ड्रोन हैं। ये ड्रोन बेसिक वर्जन वाले ड्रोन हैं और इन्हें साल 2020 में अमेरिका से तब लीज पर लिया गया था जब पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ टकराव जारी था। इस ड्रोन की वजह से ही भारत को चीन की सेनाओं और उनके इनफ्रास्ट्रक्चर तैनाती के बारे में जानकारी मिली थी। साथ ही इन ड्रोन ने भारत की उस योजना को सफल बनाने में भी योगदान दिया जिसके तहत वह चीन को जवाब देने की तैयारी कर चुका था। इन ड्रोन्स के पास पिछले दो सालों में 10,000 घंटे की उड़ान का अनुभव है। इन ड्रोन ने अदन की खाड़ी के अलावा दक्षिणी चीन सागर पर भी सफल उड़ान भरी है।
कैसे मिलेगी मंजूरी
भारत ने पहले 30 ड्रोन को करीब तीन अरब डॉलर की कीमत से खरीदने की योजना बनाई थी। इसके बाद फिर संख्या को 18 से 24 के बीच किया गया है। ड्रोन की संख्या हाल ही में तीनों सेनाओं के प्रतिनिधियों की तरफ से हुई एक पैनल चर्चा के बाद कम किया गया था। फिलहाल खरीद को दो सरकारी कमेटियों की मंजूरी मिलनी बाकी है। एक कमेटी के मुखिया जहां रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह हैं तो दूसरी कमेटी को खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लीड करते हैं। एमक्यू-9बी प्रीडेटर ड्रोन को सैन डियागो स्थित जनरल एटॉमिक्स की तरफ से निर्मित किया जाता है। साल 2020 के बाद से यह भारत को होने वाली पहली सबसे बड़ी मिलिट्री बिक्री है। उस समय भारत ने लॉकहीड मार्टिन की तरफ से तैयार दो दर्ज सिकोरस्की MH-60 हेलीकाप्टर्स खरीदे थे। वह डील करीब 2.6 अरब डॉलर की थी।
और मजबूत होंगे सुरक्षा संबंध
इस डील के बाद अमेरिका के साथ सुरक्षा संबंध और गहरे हो जाएंगे। अमेरिका और भारत के बीच साल 2008 में रक्षा संबंध न के बराबर थे। पेंटागन के मुताबिक साल 2020 में यह आंकड़ा बढ़कर 20 अरब डॉलर तक पहुंच गया था। दोनों देशों ने पिछले एक दशक में ऐसे सौदों पर साइन किए हैं जिसके बाद अमेरिका और भारत की सेनाएं एक-दूसरे के मिलिट्री बेसेज का प्रयोग कर सकेंगी। इन मिलिट्री बेसज को रि-फ्यूलिंग के लिए प्रयोग किया जा रहा है।
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