अंग्रेजों ने कैसे लूटा भारत की रियासतों का खजाना, ब्रिटेन के संग्रहालय देते हैं इसकी गवाही

गहन शोध के आधार पर News9 Plus की सीरीज India's Looted Treasures में दिखाया गया है कि अंग्रेजों ने भारतीय खजानों को कैसे लूटा. जयदीप वीजी बता रहे हैं भारत के वे लूटे हुए बेशकीमती खजाने इन दिनों ब्रिटेन के कई संग्रहालयों में रखे गए हैं.
How the British looted the treasure of the princely states of India, British museums testify to this
How the British looted the treasure of the princely states of India, British museums testify to this29/04/2023

आगामी 6 मई को ब्रिटेन के किंग चार्ल्स III और उनकी पत्नी क्वीन कैमिला एक राजकीय जुलूस में बकिंघम पैलेस से वेस्टमिंस्टर एब्बे की यात्रा करेंगे, जहां उन्हें सम्राट का ताज पहनाया जाएगा. शाही जोड़े के इस रस्म को राज्याभिषेक जुलूस कहा जाता है. वे बालकनी में चढ़ेंगे और मेहमानों का अभिवादन करेंगे. लेकिन इस दौरान उन आभूषणों का प्रदर्शित किया जायेगा, जो कि औपनिवेशिक काल में खासतौर पर भारत से लूटे गए थे.

राजमहल की तरफ से बताया गया है कि यह एक भव्य समारोह होगा, यह धूमधाम और भव्यता से भरा होगा. इसके बीस दिन बाद 26 मई को मध्य लंदन स्थित ऐतिहासिक रॉयल पैलेस के ज्वेल हाउस में एक नई प्रदर्शनी होगी. इस प्रदर्शनी में महारानी के मुकुट में जड़े हीरे को भी रखा जाएगा, वह हीरा कोहिनूर (Kohinoor) है.

लूट की लंबी है दास्तान

इस श्रेणी में 105.6 कैरेट का वह हीरा ही नहीं बल्कि 18वीं शताब्दी में महाराजा रणजीत सिंह के कमल सिंहासन और पेशवा के नैसैक हीरे से लेकर सिराज-उद-दौला की पालकी और टीपू सुल्तान के स्वर्ण सिंहासन तक के बारे में सोचा जा सकता है. अंग्रेजी शासनकाल में भारत की धरती से बहुमूल्य खजाने लूटे गए.

गार्जियन की एक रिपोर्ट के मुताबिक यह लूट राजशाही के इशारे पर की गई एक गुप्त मिशन का हिस्सा थी. क्वीन मैरी को सौंपी गई 1912 की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे कोहिनूर जैसे बेशकीमती हीरे को भारत से निकाला गया और बाद में महारानी विक्टोरिया को ‘विजय की ट्रॉफी’ के रूप में पेश किया गया.

भारत के खजाने की लूट पर सीरीज

News9 Plus पर भारत के ऐसे ही खजानों की लूट की कहानी (India’s Looted Treasures) को चार भागों में विस्तार से प्रस्तुत किया गया है. यह सीरीज गहन शोध के आधार पर तैयार की गई है. इसके तीन एपिसोडों में भारत के संपन्न राज्यों- मराठा, सिख और टीपू के राज की लूट की पड़ताल की गई है जबकि चौथे एपिसोड में बंगाल की लूट को दर्शाया गया है.

इतिहासकार और लेखक विलियम डेलरिम्पल के मुताबिक हालात ने भारत में लूट के लिए ज़मीन तैयार की. एंगस मैडिसन के आंकड़ों के मुताबिक जब ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई, ब्रिटेन दुनिया के सकल घरेलू उत्पाद का केवल 1.8 फीसदी उत्पादन कर रहा था, जबकि मुगल साम्राज्य 22फीसदी उत्पादन कर रहा था. दूसरे शब्दों में कहें तो दुनिया के सकल घरेलू उत्पाद का पांचवां हिस्सा मुगल साम्राज्य से आ रहा है.

यानी अंग्रेज मुगलों की तुलना में बहुत गरीब थे, लेकिन उनके पास सैन्य शक्ति थी और तब भारत विकेंद्रीकृत था, अलग-अलग रियासतों में बंटा हुआ था. ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने बहुत ही चतुर कूटनीति अपनाकर भाड़े के सैनिकों के जरिए पहले बंगाल के नवाबों को बाहर निकालने में कामयाबी हासिल की फिर दूसरे क्षेत्रों में.

टीपू सुल्तान और अंग्रेज का सामना

विलियम डेलरिम्पल के साथी इतिहासकार और लेखक उदय कुलकर्णी कहते हैं कि 18 वीं शताब्दी का अंत भारत के औपनिवेशिक इतिहास में एक मोड़ लेकर आया. अब तक अंग्रेजों ने देश के अधिकांश भाग को अपने नियंत्रण में ले लिया था, केवल दो शक्तियां बची थीं-मराठा और टीपू सुल्तान.

टीपू सुल्तान की कहानी भारत में ब्रिटेन की रणनीति का अहम हि्स्सा है. मैसूर के इतिहास के शोधकर्ता निधिन ओलिकारा कहते हैं कि कैसे शासक के सिंहासन में जड़ा एक रत्न उनसे छीन लिया गया था. दक्षिणी राज्य के एपिसोड में सेरिंगापटम (अब श्रीरंगपटना) की लूट की कहानी दर्शाई गई है.

ओलिकारा कहते हैं, “यह आठ कोने वाला सिंहासन था. उन दिनों इसी शैली के सिंहासन होते थे. उनके पास सोने और कीमती पत्थरों की एक छतरी होती थी. उनमें से प्रत्येक छोर पर एक बाघ, एक कलश होता था. यह एक भव्य सिंहासन था. ब्रिटिश सैनिकों ने लूटने से पहले इसे टुकड़ों में काट दिया था. जिसके बाद बेशकीमती रत्न लूट लिए. बड़े बाघ के सिर, कलश और पक्षी को छोड़कर सिंहासन का अधिकांश हिस्सा कहीं खो गया.

आज ब्रिटिश कोहिनूर को शापित हीरा कहते हैं

इस सीरीज में अंग्रेजों द्वारा किये गये शोषण, अवसरवाद, पाशविक बल और चालाकी को बखूबी दिखाया गया है. भारत में उपनिवेशवाद के तौर-तरीके को दिखाना इसका मकसद है. यह रियासत भारत के ताने-बाने में कमजोरियों की ओर भी इशारा करता है. जिसके कारण इंग्लैंड इतना संपत्तिशाली हो गया.

2017 में प्रकाशित पुस्तक ‘कोह-ए-नूर: द हिस्ट्री ऑफ द हिस्ट्री’ की लेखक, पत्रकार और टीवी प्रस्तुतकर्ता अनीता आनंद सीरीज में कहती हैं-कोहिनूर एक अच्छा उदाहरण है, दुनिया का सबसे बदनाम हीरा. शायद आप को नहीं मालूम होगा यह इंग्लैंड में अब भी एक शापित हीरे के रूप में जाना जाता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि यह अपनी पुरातनता से अलग हो चुका है. कुछ लोग कहते हैं कि यह भगवान सूर्य का निर्दिष्ट रत्न है और इसलिए कोई भी व्यक्ति इसे धारण करने में सक्षम नहीं है.

यूके में है लूट का संग्रहालय

पोलिश युगल मेरु और सिल्विया का कहना है कि इसे स्वीकार करने के सिवा कोई चारा नहीं. ब्रिटिश कुछ संग्रहालयों में चोरी की वस्तुओं की प्रदर्शनी को देखने के लिए शुल्क लिया जाता है. सोशल मीडिया पर इसे विस्तार से दिखाया जा चुका है.

यूके में अधिकांश संग्रहालय आम जनता के लिए मुफ्त खुले हैं. जिनमें कई भारतीय खजाने शामिल हैं. हालांकि एक अपवाद भी है. जहां ताज के गहने रखे जाते हैं, जिसमें कोहिनूर भी शामिल है वहां प्रवेश के लिए पर्याप्त शुल्क लिया जाता है.

पोलिश युगल कहते हैं-चुराए गए भारतीय खजाने के सांस्कृतिक महत्व को स्वीकार करना जरूरी है जो आज के ब्रिटिश संग्रहालयों में रखे गए हैं. ये कलाकृतियां भारत से संबंधित हैं. ये भारत के समृद्ध इतिहास और विरासत का परिचय देते हैं.

वो आगे कहते हैं – यह अनिवार्य है कि इन खजानों को भारत को वापस करने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए. यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इन्हें उनके सांस्कृतिक संदर्भ में पहचाना और माया जाए. इन चोरी की गई कलाकृतियों की वापसी न केवल न्याय का मामला है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भारत की सांस्कृतिक पहचान और विरासत को संरक्षित करने का भी मामला है.

शशि थरूर ने भी मांगा कोहिनूर

तिरुवनंतपुरम के सांसद शशि थरूर की किताबें एन एरा ऑफ डार्कनेस: द ब्रिटिश एम्पायर इन इंडिया (2016) और इनग्लोरियस एम्पायर: व्हाट द ब्रिटिश डिड टू इंडिया (2017) भी अंग्रेजों की लूट की लंबी कहानी कहती है.

6 मई को किंग चार्ल्स के राज्याभिषेक के संदर्भ में थरूर कहते हैं: “लंदन के टॉवर में रानी मां के मुकुट पर कोहिनूर को फहराना पूर्व शाही शक्ति द्वारा किए गए अन्याय का एक शक्तिशाली स्मारक है. जब तक इसे लौटाया नहीं जाता तब तक प्रायश्चित के प्रतीकात्मक संकेत के रूप में – यह लूट और हेराफेरी का सबूत बना रहेगा. यह उपनिवेशवाद की पहचान था.

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