जनरल करिअप्पा जिन्हें पाकिस्तानी सैनिक भी करते थे सैल्यूट:कहानी भारत के पहले सेना-प्रमुख की, जिनके लिए नेहरू से भिड़े सैन्य अफसर

General Cariappa whom Pakistani soldiers used to salute: the story of India's first army chief, for whom military officers fought with Nehru
General Cariappa whom Pakistani soldiers used to salute: the story of India's first army chief, for whom military officers fought with Nehru
General Cariappa whom Pakistani soldiers used to salute: the story of India's first army chief, for whom military officers fought with NehruGeneral Cariappa whom Pakistani soldiers used to salute: the story of India's first army chief, for whom military officers fought with Nehru

1948 में नए सेना प्रमुख की नियुक्ति के लिए पंडित जवाहर लाल नेहरू ने एक बैठक बुलाई, जिसमें देश के सभी टॉप नेता और सेना अधिकारी मौजूद थे। इस बैठक में पंडित नेहरू ने कहा-

‘मुझे लगता है कि हमें अंग्रेज सेना अधिकारी को इंडियन आर्मी का चीफ बनाना चाहिए, क्योंकि हमारे पास सेना के नेतृत्व करने का एक्सपीरिएंस नहीं है।’

तभी इस बैठक में मौजूद लेफ्टिनेंट जनरल नाथू सिंह राठौर ने कहा-

'हमारे पास तो देश का नेतृत्व करने का भी एक्सपीरिएंस नहीं है तो क्यों नहीं किसी अंग्रेज को भारत का प्रधानमंत्री बना दिया जाना चाहिए।'

ये सुनते ही पंडित नेहरू ने पूछा कि क्या आप इंडियन आर्मी के पहले जनरल बनने को तैयार हैं? नाथू सिंह राठौर ने कहा कि लेफ्टिनेंट जनरल करिअप्पा को ये जिम्मेदारी सौंप सकते हैं। कुछ महीने बाद ही 15 जनवरी 1949 को जनरल के.एम. करिअप्पा देश के पहले सेना प्रमुख बन गए।

आज उनके 123वें जन्मदिन पर जानेंगे कि भारत के लिए कितने अहम थे जनरल करिअप्पा, क्यों पाकिस्तान में कैद अपने बेटे को छुड़ाने से इनकार कर दिया था?

जनरल करिप्पा पर लिखी गई ये स्टोरी उनके बेटे के.सी. करिअप्पा की किताब ‘फील्ड मार्शल के.एम. करिअप्पा’ और जनरल वीके सिंह की किताब ‘लीडरशिप इन इंडियन आर्मी’ में लिखी गई बातों पर आधारित है।

लेफ्टिनेंट कर्नल बनने वाले पहले भारतीय अफसर थे करिअप्पा
28 जनवरी 1899 को के.एम करिअप्पा कर्नाटक में पैदा हुए। शुरुआती शिक्षा माडिकेरी सेंट्रल हाई स्कूल से करने के बाद 1917 में उन्होंने मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज से अपनी पढ़ाई पूरी की।

इसके बाद ही करिअप्पा का सेलेक्शन इंदौर स्थित आर्मी ट्रेनिंग स्कूल के लिए हो गया। यहां से ट्रेनिंग पूरा होते ही 1919 में उन्हें सेना में कमीशन मिला और वो भारतीय सेना में सेकेंड लेफ्टिनेंट बन गए।

आगे चलकर 1942 में करिअप्पा लेफ्टिनेंट कर्नल का पद पाने वाले पहले भारतीय अफसर बने। इससे पहले सेना के इस पद पर सिर्फ अंग्रेजों की ही तैनाती होती थी। 1944 में उन्हें ब्रिगेडियर बनाया गया और 5 साल बाद ही वह देश के पहले सेना प्रमुख बन गए।

आदेशों की अवहेलना कर लेह को घुसपैठियों से आजाद कराया
जनवरी 1948 में कश्मीर की हालत खराब हो गई। 50 हजार से ज्यादा पाकिस्तानी कबायली घुसपैठी कश्मीर के नौशेरा, लेह और दूसरे सेक्टर में आ चुके थे। अब कश्मीर के बड़े हिस्से को बचाना मुश्किल हो गया था।

इस वक्त भारत सरकार ने रांची में तैनात सेना के पूर्वी कमान प्रमुख करिअप्पा को कश्मीर भेजने का फैसला किया। पश्चिमी कमान के प्रमुख बनते ही करिअप्पा एक्शन मोड में आ गए। उनके सामने कश्मीर को घुसपैठियों से जल्द से जल्द आजाद कराने की चुनौती थी। इसलिए उन्होंने सबसे पहले अपनी पसंद के सेना अधिकारी जनरल थिमैया को कलवंत सिंह की जगह पर जम्मू-कश्मीर फोर्स का प्रमुख बनाया।

जनरल थिमैया ने फौरन कश्मीर में मोर्चा संभाल लिया। अब तक लेह जाने वाली सड़क पर पाकिस्तानी घुसपैठियों ने कब्जा कर लिया था। ये रास्ता तब तक नहीं खोला जा सकता था, जब तक भारतीय सेना का जोजिला और कारगिल पर कब्जा नहीं होता। ऊपर से आए आदेशों ने सेना को अभी जोजिला और द्रास की तरफ आगे बढ़ने से रोका हुआ था लेकिन जनरल करियप्पा ने इन आदेशों की अवहेलना कर सेना को आगे बढ़ने की कमांड दे दी।

इसके बाद दोनों तरफ से चली घंटों की जंग में देखते ही देखते भारतीय सेना ने नौशेरा और झंगर को घुसपैठियों से आजाद करा दिया। जोजिला और कारगिल से भी पाकिस्तानी कबायली भागने के लिए मजबूर हो गए। इस तरह ऊपरी आदेश की परवाह किए बिना समय रहते जनरल करिअप्पा ने घुसपैठियों को पीछे नहीं धकेला होता तो शायद आज लेह भारत का हिस्सा नहीं होता।

जब जनरल करिअप्पा बोले- ‘दुश्मन के गोले भी जनरल का सम्मान करते हैं’
लेह को आजाद कराने के बाद जनरल करिअप्पा जम्मू-कश्मीर के बॉर्डर वाले गांव टिथवाल के दौरे पर गए। यहां कुछ किलोमीटर दूर पहाड़ी पर घुसपैठियों का कब्जा था। जनरल करिअप्पा दुश्मनों की गोली की परवाह किए बिना पहाड़ी पर चढ़ गए।

दूसरी तरफ से फायरिंग हुई और एक गोला वह जहां खड़े थे, उससे कुछ दूर आकर गिरा। इसके बाद जनरल करिअप्पा ने हंसते हुए कहा- देखो दुश्मन के गोले भी जनरल का सम्मान करते हैं।

इसी वक्त एक रोज जनरल करिअप्पा श्रीनगर से उरी जा रहे थे। उनकी गाड़ी पर सेना का झंडा और स्टार लगा था। वहां तैनात ब्रिगेडियर बोगी सेन ने कहा कि सर अपने गाड़ी से झंडा और प्लेट हटा दें। दुश्मन गाड़ी पर स्नाइपर से हमला कर सकते हैं।

इस पर जनरल करिअप्पा बोले नहीं, अगर हमने ऐसा किया तो सैनिकों का मनोबल कम होगा। उन्हें लगेगा हमारा अधिकारी दुश्मनों से डर गया। अभी गाड़ी कुछ किलोमीटर ही चली थी कि सामने से फायर आया। दरअसल, ब्रिगेडियर बोगी सिंह की बात सही साबित हुई। इस फायरिंग में करिअप्पा की गाड़ी का एक टायर फट गया, लेकिन वो बाल-बाल बच गए।

पाकिस्तान में कैद हुआ बेटा तो कहा- ‘सभी हिंदुस्तानी कैदी मेरे बेटे, छोड़ना है तो सबको छोड़ो’
ये बात 1965 भारत-पाकिस्तान जंग की है। जनरल करिअप्पा इस वक्त सेना से रिटायर हो चुके थे, लेकिन उनके बेटे के.सी. नंदा करिअप्पा एयरफोर्स में फ्लाइट लेफ्टिनेंट थे।

जंग के दौरान के.सी. नंदा करियप्पा अपने एयरक्राफ्ट से पाकिस्तानी सेना पर आफत बनकर गोले बरसा रहे थे। तभी वह गलती से पाकिस्तानी सीमा में प्रवेश कर गए, जहां उनका विमान दुश्मनों की गोलियों का शिकार बन गया।

किसी तरह के.सी. करिअप्पा सुरक्षित नीचे उतरे तो पाक सेना ने उन्हें अपने कब्जे में ले लिया। जैसे ही पाकिस्तानी सेना को पता चला कि वह रिटायर्ड जनरल करिअप्पा के बेटे हैं तो रेडियो पर ये जानकारी ऑन एयर की गई। पाकिस्तान सरकार ने कहा कि फ्लाइट लेफ्टिनेंट करिअप्पा पाकिस्तान के कब्जे में हैं और सुरक्षित हैं।

इस वक्त पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान थे, जो आजादी से पहले जनरल करिअप्पा के अंडर सेना में काम कर चुके थे। ऐसे में उन्होंने उच्चायुक्त को पूर्व सेना प्रमुख करिअप्पा से बात करने के लिए कहा।

पाकिस्तानी उच्चायुक्त ने पूर्व सेना प्रमुख करिअप्पा से फोन पर बात की। उन्होंने कहा कि आप चाहें तो आपका बेटा सुरक्षित भारत लौट सकता है, ऐसा सर अयूब खान ने कहा है।

इस बात पर पूर्व सेना प्रमुख करिअप्पा बोले- पाकिस्तान में कैद सभी हिंदुस्तानी जवान मेरे बेटे हैं, छोड़ना है तो सभी को छोड़ो अकेले नंदा करिअप्पा को नहीं। हालांकि, बाद में सभी भारतीय कैदियों के साथ उन्हें छोड़ा गया।

के.सी. करिअप्पा ने अपनी किताब में लिखा कि जब वो पाकिस्तानी जेल में बंद थे तो अयूब खान की पत्नी और उनका बड़ा बेटा अख्तर अयूब उनसे मिलने आए थे। इस दौरान अख्तर के हाथ में स्टेट एक्सप्रेस सिगरेट का एक कार्टन और वुडहाउस नाम का उपन्यास था।

जनरल थिमैया गाड़ी में सिगरेट पीने लगे तो करिअप्पा ने उन्हें चेताया
एक घटना का जिक्र करते हुए जनरल वीके सिंह अपनी किताब ‘लीडरशिप इन इंडियन आर्मी’ में लिखते हैं कि एक बार जनरल करिअप्पा कश्मीर की यात्रा के दौरान जनरल थिमैया के साथ एक गाड़ी में बैठे हुए थे। दोनों सेना अधिरकारियों ने कश्मीर और दूसरी जगहों पर साथ मिलकर काम किया था।

इसी वजह से जनरल थिमैया ने एक सिगरेट निकाला और जलाकर वह कश लगाने लगे। जनरल करिअप्पा को सिगरेट पीना पसंद नहीं था। ऐसे में वह थिमैया की ओर देखने लगे। फिर थोड़ा ठहरकर कहा कि सेना की गाड़ी में सिगरेट पीना सही बात नहीं है। ये सुनते ही थिमैया ने सिगरेट बुझा दी।

कुछ दूर आगे बढ़ने पर एक बार फिर जनरल थिमैया को सिगरेट की तलब हुई। उन्होंने सिगरेट निकाली और फिर अपनी जेब में रख लिया। करिअप्पा अपने साथी अधिकारी की भावना को समझ गए। उन्होंने कहा ड्राइवर गाड़ी रोको थिमैया जी को सिगरेट पीनी है। इस घटना से उनके अनुशासन प्रिय होने का संकेत मिला।

सेना को ताकतवर बनाए रखने के लिए सरकार तक से टकराए
देश की आजादी के बाद जब आजाद हिंद फौज को भारतीय सेना में शामिल करने की बात हुई तो जनरल करिअप्पा ने इसका खुलकर विरोध किया। उन्होंने कहा कि ऐसा किया तो भारतीय सेना राजनीति से अछूती नहीं रह जाएगी।

इसी तरह भारतीय सेना पर अंग्रेजी दौर के असर को कम करने के लिए उन्होंने कई प्रयास किए। इन्हीं प्रयासों के तहत सेना में कास्ट बेस्ड रिजर्वेशन का भी करिअप्पा ने विरोध किया। उनका मानना था कि ऐसा करने से सेना की गुणवत्ता में कमी आएगी।। उन्होंने कहा कि काबिलियत के आधार पर ही सेना में बहाली हो।

करिअप्पा उन दो अधिकारियों में थे, जिन्हें फील्ड मार्शल की पदवी मिली
करिअप्पा की वीरता को देखकर ही उनके नाम के साथ ‘फील्ड मार्शल’ की उपाधि जोड़ी गई थी, ये पदवी भारतीय सेना के सिर्फ दो अधिकारियों के नाम के साथ जुड़ी है।

ये पांच स्टार वाले अधिकारियों को मिलने वाला भारतीय सेना का सर्वोच्च सम्मान है। करिअप्पा के अलावा सैम मानेकशॉ को भी इससे सम्मानित किया गया था। इतना ही नहीं अमेरिका के राष्ट्रपति हैरी एस. ट्रूमैन ने उन्हें ‘ऑर्डर ऑफ द चीफ कमांडर ऑफ द लीजन ऑफ मेरिट’ के पद से सम्मानित किया था।

The mainstream media establishment doesn’t want us to survive, but you can help us continue running the show by making a voluntary contribution. Please pay an amount you are comfortable with; an amount you believe is the fair price for the content you have consumed to date.

happy to Help 9920654232@upi 

Buy Website Traffic
logo
The Public Press Journal
publicpressjournal.com