"चुनाव आयोग को SC के फैसले का करना चाहिए था इंतजार" : शिवसेना बनाम शिवसेना विवाद पर वकील कपिल सिब्‍बल

उद्धव ठाकरे शिवसेना चुनाव चिह्न एकनाथ शिंदे गुट को देने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं. उद्धव ठाकरे गुट ने अपनी याचिका में कहा है कि चुनाव आयोग की भूमिका निष्पक्ष नहीं रही है.
"EC Should Have Waited For SC Verdict": Advocate Kapil Sibal On Shiv Sena Vs Shiv Sena Dispute
"EC Should Have Waited For SC Verdict": Advocate Kapil Sibal On Shiv Sena Vs Shiv Sena Dispute21/02/2023

उद्धव ठाकरे, शिवसेना चुनाव चिह्न एकनाथ शिंदे गुट को देने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और चुनाव आयोग पर जमकर बरसे. चुनाव आयोग पर गलत निर्णय लेने का आरोप लगाया. उद्धव ठाकरे की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए वकील कपिल सिब्‍बल ने कहा कि चुनाव आयोग को अभी थोड़ा इंतजार करना चाहिए था. सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग के फैसले के खिलाफ याचिका पर बुधवार 3 बजकर 30 मिनट पर सुनवाई  होगी.   

सिब्बल ने चुनाव चिन्ह का मुद्दा संविधान पीठ के सामने भी उठाया और दौरान उन्‍होंने कहा, "चुनाव आयोग को सुपीम कोर्ट के अंतिम फैसले का इंतजार करना चाहिए था. कम से कम चुनाव आयोग को तब तक आगे नहीं बढ़ना चाहिए था, जब तक कि स्पीकर विधायकों की अयोग्यता पर फैसला नहीं कर देते."  

सिब्बल ने कहा कि चुनाव आयोग ने यह कहकर गलती की कि शिवसेना में विभाजन हुआ है. चुनाव आयोग ने उन विधायकों की संख्या पर भरोसा करके गलती की है, जो अयोग्यता के दायरे में हैं. चुनाव आयोग को संविधान पीठ के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करना चाहिए था. शिंदे  गुट के विधायकों के अयोग्य होने की संभावना है. जब इस मामले पर कल सुनवाई होगी, तब इस अदालत को इस मुद्दे की जांच करनी चाहिए. 

इस पर सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, "लेकिन आपने कल जो याचिका दायर की है वो चुनाव आयोग के फैसले के खिलाफ एक स्वतंत्र चुनौती है.  

शुक्रवार को केन्द्रीय चुनाव आयोग ने अपने फैसले में शिवसेना पार्टी और चुनाव चिह्न शिंदे गुट को इस्तेमाल की इजाजत दे दी थी.  इस पर सवाल उठाते हुए शिवसेना ने कहा है कि चुनाव आयोग ने 1999 के संविधान पर विचार किया, जबकि 2018 का संशोधित संविधान लागू था. उन्हें  2018 के संविधान को रिकॉर्ड पर रखने के लिए अधिक समय नहीं दिया गया था. 2018 के संशोधित संविधान के अनुसार, शिवसेना प्रमुख पार्टी में सर्वोच्च प्राधिकारी होंगे, जो किसी भी पद पर नियुक्तियों को रोक सकते हैं, हटा सकते हैं या रद्द कर सकते हैं और जिनके निर्णय सभी पार्टी मामलों पर अंतिम हैं. 

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