तालिबान की सरकार को मान्यता देने के करीब चीन:अफगानिस्तान में राजदूत नियुक्त; ऐसा करने वाला दुनिया का पहला देश बना

अफगान अधिकारियों ने दावा किया है कि तालिबानी कब्जे के बाद चीन ने काबुल में अपना पूर्णकालिक राजदूत नियुक्त कर दिया है। इसके साथ ही चीन ऐसा करने वाला दुनिया का पहला देश भी बन गया है।
China close to recognizing Taliban government: Ambassador appointed to Afghanistan
China close to recognizing Taliban government: Ambassador appointed to Afghanistan14/09/2023

दरअसल, 2021 में अफगानिस्तान में सत्ता पर काबिज होने के बाद से तालिबान अंतरराष्ट्रीय मान्यता की मांग कर रहा है। हालांकि, अभी तक किसी भी देश ने ऐसा नहीं किया है। काबुल में अपना पूर्णकालिक राजदूत नियुक्त कर चीन इस दिशा में आगे बढ़ रहा है।

तालिबान के एक प्रवक्ता ने कहा कि नए चीनी राजदूत झाओ जिंग ने प्रधानमंत्री मोहम्मद हसन अखुंद और विदेश मंत्री शेख अमीर खान मुत्तकी से मुलाकात की है। हालांकि, चीन ने अफगानिस्तान में राजदूत की नियुक्ति को सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा बताया है।

चीन की मांग तालिबान पर लगी पाबंदियां हटें...
तालिबान की सरकार में शामिल कई अधिकारियों पर अंतरराष्ट्रीय पाबंंदियां लगी हैं। वहीं, संयुक्त राष्ट्र संघ यानी UN में अफगानिस्तान की सीट पर अमेरिका के समर्थन वाली पुरानी सरकार काबिज है। अफगानिस्तान में चीन के पिछले राजदूत वांग यू ने 2019 में यह पद संभाला था और पिछले महीने उनका कार्यकाल समाप्त हुआ।

काबुल में राजदूत की उपाधि वाले अन्य दूसरे राजनयिक भी हैं, लेकिन उन सभी की नियुक्ति तालिबान के कब्जे से पहले ही हुई थी।

अलजजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक जब राजदूत झाओ की कार पुलिस के काफिले के साथ राष्ट्रपति भवन पहुंची। चीन की ऐंबैसी की तरफ से जारी एक बयान में अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील की गई है कि वो अफागनिस्तान में तालिबान की सरकार से डायलॉग बढ़ाएं। साथ ही देश में एक मॉडर्न पॉलिसी अपनाने और आतंकवाद से लड़ने में मदद करें।

बयान में अमेरिका का नाम लिए बिना कहा गया है- अफगानिस्तान में जो कुछ हुआ उससे सबक लेने की जरूरत है। उन्हें आतंक से लड़ाई के दोहरे स्टैंडर्ड को छोड़ना चाहिए। चीन ने बाहरी देशों में सीज की गई अफगानिस्तान की संपत्ति छोड़ने और तालिबान पर लगी पाबंदियों को भी हटाने की मांग की है।

कूटनीतिक मान्यता नहीं मिलने का किसी देश पर क्या असर होता है?

  • अगर किसी देश में सरकारों को मान्यता नहीं मिलती तो वह देश इंटरनेशनल ट्रीटी में शामिल नहीं हो सकते। इंटरनेशनल प्लेटफॉर्म पर उन्हें अपनी बात रखने का मौका नहीं मिलता। उनके कूटनीतिक प्रतिनिधि विदेशों में लीगल एक्शन से छूट नहीं पा सकते हैं। वे किसी और सरकार के सामने या विदेशी अदालतों में प्रोटेस्ट या प्रदर्शन नहीं कर सकते हैं।

  • जब यह माना जाता है कि कोई सरकार अपने देश में विदेशी हितों को सुरक्षित रखने में नाकाम रही है या इंटरनेशनल स्तर पर जवाबदेही पूरा नहीं कर पा रही है तो उसके अन्य देशों से रिश्ते खराब हो सकते हैं। सैन्य विद्रोह या बगावत को भी उस समय मान्यता मिलती है जब वहां की नई सरकारें यह सुनिश्चित करती हैं कि इंटरनेशनल लेवल पर वह जिम्मेदारी निभाने को पूरी तरह तैयार हैं।

  • बर्मा को ही लें। वहां छह महीने पहले सैन्य विद्रोह हुआ था। सेना ने वहां प्रशासन पर कब्जा कर रखा है। समानांतर सरकार भी चल रही है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नई सरकार को मान्यता नहीं है और वह डिप्लोमेटिक चैनल्स के जरिए ज्यादा से ज्यादा देशों से मान्यता हासिल करने की कोशिश कर रही है।

  • अफगानिस्तान के 1 ट्रिलियन लिथियम रिजर्व में निवेश करेगा चीन
    ​​​​​चीन काफी समय से तालिबान से नजदीकियां बढ़ा रहा है। साल की शुरुआत में ही चीन ने अफगानिस्तान के लिथियम रिजर्व में निवेश करने की इच्छा जाहिर की थी। इसके लिए तालिबान के माइनिंग और पेट्रोलियम मंत्री शहाबुद्दीन दिलावर ने चीन की कंपनी गोचिन के अधिकारियों से काबुल में मुलाकात की थी।

    मंत्री दिलावर ने कहा था कि इस निवेश से 1 लाख 20 हजार नौकरियों के अवसर पैदा होंगे। चीन की कंपनी ने तालिबान से ये भी वादा किया है कि वो सलांग पास को 7 महीनों के भीतर ठीक कर देंगे। साथ ही एक और टनल भी बनाएंगे।

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