महाराष्ट्र चुनाव: पूरी ताकत से मैदान में उतरे संघ-आरएसएस के स्वयंसेवक, भाजपा के लिए साबित हुए वरदान

BJP की चमत्कारिक जीत का अंदाजा उसके स्ट्राइक रेट से आ जाता है। उसने 148 सीटों पर चुनाव लड़ा और 132 पर जीत हासिल की। स्ट्राइक रेट रहा 89%
महाराष्ट्र चुनाव: पूरी ताकत से मैदान में उतरे संघ-आरएसएस के स्वयंसेवक, भाजपा के लिए साबित हुए वरदान

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे इस बार ऐतिहासिक और अप्रत्याशित रहे। BJP ने लहर नहीं, बल्कि सुनामी ला दी। इन चौंकाने वाले नतीजों ने BJP के सहयोगी दलों—शिंदे सेना और अजित पवार की NCP—की भी नैया पार लगा दी। दूसरी ओर, कांग्रेस के नेतृत्व वाली महाविकास आघाड़ी, जिसमें उद्धव ठाकरे की सेना और शरद पवार की NCP शामिल थीं, पूरी तरह धराशायी हो गई। राज ठाकरे की MNS, प्रकाश आंबेडकर की वंचित बहुजन आघाड़ी और बच्चू कडू की तीसरी आघाड़ी शून्य पर सिमट गईं, जिससे उनके अस्तित्व पर संकट गहरा गया।

शानदार स्ट्राइक रेट

BJP की अभूतपूर्व जीत को उसके स्ट्राइक रेट से समझा जा सकता है। पार्टी ने 148 सीटों पर चुनाव लड़ा और 132 सीटें जीतीं, जो 89% का स्ट्राइक रेट है। यह आंकड़ा अब तक किसी पार्टी द्वारा हासिल किए गए सबसे ऊंचे स्ट्राइक रेट में से एक है। शिंदे सेना ने भी 81 सीटों पर चुनाव लड़ा और 57 सीटों पर विजय हासिल की, यानी 70% का स्ट्राइक रेट। अजित पवार की NCP का प्रदर्शन और भी प्रभावशाली रहा, उसने 55 सीटों पर चुनाव लड़ा और 41 सीटें जीतीं, जो करीब 75% का स्ट्राइक रेट है। इसके विपरीत, कांग्रेस का स्ट्राइक रेट केवल 16% रहा, जिसने 101 सीटों में से सिर्फ 16 पर जीत दर्ज की। उद्धव सेना ने 95 सीटों पर चुनाव लड़ा और 20 पर जीत हासिल की, यानी 21% का स्ट्राइक रेट। शरद पवार की NCP का प्रदर्शन सबसे खराब रहा, 87 सीटों में से केवल 10 पर जीत मिली, जिससे उनका स्ट्राइक रेट महज 12% रहा।

शरद पवार का हाशिये पर जाना

शरद पवार की NCP को सबसे बड़ा झटका लगा, और उनके इस तरह हाशिये पर जाने से महाराष्ट्र की राजनीति में उनके युग का अंत होता नजर आ रहा है। जनता ने शिंदे सेना को असली शिवसेना और अजित पवार की NCP को सही NCP के रूप में स्वीकार कर लिया। शिंदे और अजित पवार ने अपने साथ जितने विधायक तोड़े थे, उससे ज्यादा को चुनाव जिताकर अपनी स्थिति मजबूत कर ली। इससे उनकी पकड़ लंबे समय तक बनी रहेगी।

कमजोर विपक्ष

कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी महाविकास आघाड़ी को करारी हार झेलनी पड़ी। इस हार के कारण विपक्ष किसी भी पार्टी के नेता को नेता प्रतिपक्ष का पद हासिल करने में विफल रहा। इस पद के लिए 10% से ज्यादा यानी कम से कम 29 विधायकों की जरूरत होती है, जो किसी भी दल के पास नहीं है।

जीत के प्रमुख कारण

महायुति की इस ऐतिहासिक जीत के पीछे कई कारण रहे। इनमें लाड़की बहीण योजना जैसी योजनाओं का प्रभाव, हिंदुत्व के वोटों का ध्रुवीकरण, लोकसभा चुनावों जैसी तटस्थता छोड़कर संघ के स्वयंसेवकों का सक्रिय होना, महायुति घटक दलों के बीच सामंजस्य और OBC समुदाय को साथ जोड़ने में सफलता शामिल हैं। मराठा आरक्षण के मुद्दे को भी संघ ने कुशलतापूर्वक निष्प्रभावी बना दिया। यहां तक कि आरक्षण आंदोलन से जुड़े नेता मनोज जरांगे के करीबी राजेश टोपे को भी मराठा वोट न मिलने से हार का सामना करना पड़ा। शरद पवार की पार्टी को भी मराठा समुदाय ने नकार दिया।

महिलाओं का रुझान

लाड़ली बहीण योजना ने महिला मतदाताओं का दिल जीत लिया। आघाड़ी ने शुरू में इस योजना का विरोध किया और बाद में इससे भी ज्यादा लाभ देने का वादा किया, जिससे महिलाओं में उसकी साख कम हो गई। इस चुनाव में महिलाओं का मतदान प्रतिशत 6% से ज्यादा बढ़ा और 12 से ज्यादा क्षेत्रों में महिलाओं ने पुरुषों से ज्यादा मतदान किया। मुस्लिम महिलाओं ने भी इस बार परंपरागत वोट बैंक से हटकर महायुति को समर्थन दिया।

मुस्लिम वोटों की दूरी

मुस्लिम वोट बैंक ने इस बार विपक्षी आघाड़ी से दूरी बना ली। आम तौर पर 80% के करीब मुस्लिम मतदान होता है, लेकिन इस बार यह आधा रह गया। मुस्लिम महिलाओं का महायुति के प्रति झुकाव इसके पीछे एक बड़ा कारण रहा। इसके अलावा, पसमांदा मुस्लिम समुदाय के बीच BJP और उसके सहयोगी दलों का प्रभाव बढ़ा है।

नैरेटिव में बदलाव

कांग्रेस और उसके सहयोगियों ने लोकसभा चुनावों में जीत के बाद आत्ममुग्धता में समय गंवाया। उद्धव ठाकरे और शरद पवार ‘गद्दार’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते रहे, लेकिन यह नैरेटिव जनता को प्रभावित नहीं कर सका। अदाणी को धारावी विकास परियोजना सौंपने के विरोध का भी जनता पर कोई असर नहीं पड़ा। उल्टा, अजित पवार ने शरद पवार की अदाणी से करीबी संबंधों को उजागर कर माहौल BJP के पक्ष में कर दिया।

इस बार BJP ने ‘बटेंगे तो कटेंगे’ और ‘एक हैं तो सेफ है’ जैसे नारों के जरिये हिंदू वोटों को संगठित किया, जिससे संघ शक्ति और नारी शक्ति की इस विजय में निर्णायक भूमिका निभाई।

महाराष्ट्र, जहां आरएसएस का मुख्यालय नागपुर में है - राज्य की दूसरी राजधानी - संगठन के लिए प्रतीकात्मक और रणनीतिक महत्व रखता है। एक वरिष्ठ आरएसएस पदाधिकारी ने कहा "हमारी भूमिका जागरूकता पैदा करना और मतदाताओं को बाहर आने और अपनी आवाज उठाने के लिए प्रोत्साहित करना था।"

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